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लघु विद्यानुवाद
मन्त्र : -
३६७
आठो ही दलो मे अष्ट जया, विजया, श्रजिता, अपराजिता, जम्भे, मोहे, स्तम्भे, स्तम्भिनी, इन जयादि देवी को लिखे, फिर सोलह दल ऊपर और खीचे, उन सोलह दलो मे क्रमश रोहिणी, प्रज्ञप्ती, वज्र श्रृखला, वज्राकुशी, अप्रति चक्रा, पुरुषदत्ता, कालि, महाकालि, गान्धारी, गौरि, ज्वालामालिनी, वैरोटि, अच्युता, अपराजिता, मानस, महा मानसि, इन सोलह विद्या देवी को लिखे, फिर उसके ऊपर चौबीस दल और बनावे, उन चौबीस दलो मे क्रमश चौवीस यक्षिणियो के नाम लिखे, चक्रेश्वरी ग्रादि । फिर बत्तीस दल और बनावे उन बत्तीस दलो मे क्रमश असुरेन्द्र, नागेन्द्र आदि बत्तीस इन्द्रो के नाम लिखे, उसके ऊपर चौबीस वज्रग्र रेखा बनावे उन चौवीस वज्र रेखा पर क्रमश चीबीस यक्षो के नाम लिखे, गौमुखादि । फिर ऊपर दश दिक्पालो के नाम लिखे, फिर नव ग्रहो के नाम लिखे । ऊपर से अनावृत मत्र लिखे, ॐ ह्री ग्रा को हे अनावृत यक्षेभ्योनम । यह हुई यन्त्र रचना चित्र देखे |
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यन्त्र व मंत्र को साधन विधि
- ॐ ह्रां ह्री ह ह्रौ ह्रः श्रसि श्राउसा मम् सर्वोपद्रव शांति कुरु कुरु स्वाहा ।
इस मन्त्र का साधक १०८ बार जाप जपे, यह मूल मन्त्र है ।
शान्ति कर्म
ज्वर रोग की शांति के लिए साधक, रात्रि के पिछले भाग मे श्वेतवर्ण से इस महा यन्त्र को भोजपत्र या आम के पाटिया पर लिखे, फिर उस यन्त्र की पूजा करके, पश्चिम की ओर मुखकर, ज्ञान मुद्रा, धारण कर पद्मासन से बैठकर, सफेद माला से, १०८ बार जप करे । इस तरह करने से तीन दिन या, पाच दिन के भीतर ज्वर दूर हो जाता है । इसी तरह ग्रन्य रोगो के लिये भी अनुष्ठान करे ।
पौष्टिक कर्म
मन्त्र — ॐ ह्रा ह्री ह्र ह्रौ ह्र ग्रसि ग्राउसा ग्रस्य देवदत्त नामधेयस्य मन पुष्टि कुरु २ स्वाहा ।
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इस तरह पौष्टिक कर्म मे भी ऐसा ही करे । इतना विशेष है कि इस जप में उत्तर की ओर मुह करके बैठे ।
वशीकरण
मन्त्र :- ॐ ह्रा ह्री ह्र हौ ह्र प्रसि उसा प्रमु राजाना वश्य कुरु २ वषट् ।