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विधि
लघु विद्यानुवाद
शांतिनाथाय शांति कराय सर्व पापप्रणाशनाय सर्व विघ्न विनाशनाय सर्व रोगोप मृत्यु विनाशनाय सर्वपरकृत क्षुद्रोपद्रव विनाशनाय सर्व क्षाम डामर विनाशनाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रौ हः श्रसि उसा मम सर्व शांति कुरू २ स्वाहा ।
विधि
मन्त्र
- इस शान्ति मन्त्र को शुक्ल पक्ष के सोलह दिन के पखवाडे मे प्रत्येक दिन १००० जप करे । सोलह दिन मे सोलह हजार जप दीप, धूप विधि से करे, फिर शान्ति विधान कराकर, १६००० जप का | दशास होम करे, तो सर्व प्रकार के रोग, सर्व प्रकार के डाकिनी, शाकिनी, भूत, प्रेतादि बाधा दूर होती है । लक्ष्मी लाभ होता है, मनवाछित सिद्धि प्राप्त होती है ।
वर्द्धमान मन्त्र
ॐ गमो भय वदो वड्ढ मारणस्स रिसहस्स चक्कं जलंतं गच्छइ प्रवासं पायालं लोयारणं भूयाणं जये वा विवादे व थंभरणेवा रणांगणेया रायं गवा मोहेण वा सव्व जीवसत्तारणं श्रपराजिदोमम् भवदु रखख २ स्वाहा ।
विधि : - इस वर्द्धमान महाविद्या को उपवास करके एक हजार जप सुगन्धित पुष्पो से जप करे, दशमास होम करे, तो ये मन्त्र सिद्ध हो जाता है । फिर कही से भय आने वाला हो अथवा आ गया हो, तो सरसो हाथ मे लेकर सर्व दिशाओ मे फेक देने से आागत उपद्रव, भय, परकृत विधाएं सर्वं स्तम्भित हो जायेगे । घर मे स्मरण मात्र से ही शांति हो जायगी । विशेष फल गुरु गम्य है |
जिनेंद्र पंच कल्याणक के समय प्रतिमा के
कान में देने वाला सूर्य मन्त्र
मन्त्र :- ॐ ह्रीं क्षू ह्र सु सुः क्रौ ह्री ऐं अर्ह नमः सर्व अर्हन्त गुणभागी भवतु
स्वाहा ।
- प्रतिष्ठाचार्य इस मन्त्र को २१ बार कान मे पढे ।
- ॐ ह्री श्री क्लीं ह्रां ह्रौ श्रीं श्री जय जय द्रां कलि द्राक्ष सां मृजय
जिनेभ्यः ॐ भवतु स्वाहा ।
विधि :- इस मन्त्र को दर्पण सामने रखकर ४ बार कान मे पढे ।