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लघुविद्यानुवाद
हुआ करता है और जिस प्रकार से हो सके पीडा मिटाने का उपाय किये जाते है, और घर के सव लोग ऐसा अनुमान करते है कि किसी की दृष्टि लगने से या भय से अथवा चमकते यह पीडा हो गयी है। इस तरह की पीडा दूर करने मे यह यत्र सहायक होता है। जब यत्र तैयार करना हो तब भोजपत्र अथवा कागज पर यक्ष कर्दम से अनार की कलम लेकर लिखना चाहिये। जब यत्र तैयार हो जाय तब समेट कर कच्चे रेशमी धागे से सात अथवा नौ आटे देकर मादलिये मे रख गले मे या हाथ मे बाँधने से पीडा मिट जाती है । आपत्ति चिता का नाश हो जाता है । बालक आराम पाता है। नित्य इष्टदेव के स्मरण को नहीं भूलना चाहिये ।।१७।।
नजर दृष्टि चौबीसा यन्त्र ॥१८॥ बालक को दृष्टि दोष हो जाता है। तब दूध पीने या कुछ खाते समय अरुचि हो जाने से वमन हो जाता है । पाचन शक्ति कम हो जाने से मुखाकृति रक्त रहित दिखने लगती है। इस तरह
यन्त्र नं०१८
को हालत हो जाने से घर मै सबको चिंता हो जाती है। इस तरह परिस्थिति में चौवीसा यंत्र भोजपत्र अथवा कागज पर अनार की कलम लेकर यक्ष कर्दम से लिखना चाहिये और मादालय - रख गले मे या हाथ पर बाधना और जिस मनुष्य का या स्त्री की दृष्टि की दृष्टि दोष हुआ है। उसका नाम देकर दष्टि दोष निवार्थ लिखना चाहिये यदि नाम स्मरण न हो तो केवल इतना है। लिखना कि दृष्टि दोष निवार्थ यत्र तैयार हो जाय तब समेट कर कच्चे रेशमी धागे मे आट दर यत्र के पास मे रखे या गले पर या हाथ पर बांधे तो दृष्टि दोष दूर हो जाता है ।।१८।।