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नदी के किनारे या तालाब की पाल पर बाघ आसन बिछाकर बैठे । शुभ समय मे यन्त्र लिखे । लिखते समय दृष्टि जल पर भी पडती रहे और लिखते समय धूप, दीप अखंड रखे तो मन इच्छा पूर्ण होती है । इतना स्मरण रखना चाहिये कि ब्रह्मचर्य पालन मे सभ्यता का व्यवहार करने मे और
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लघुविद्यानुवाद
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शुद्ध सम्यक वृती से रहने में किसी प्रकार से कमी नही होनी चाहिये । श्राचरण शुद्ध रखने से किया साधन फल देती है ॥२६॥
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ज्वर पीड़ा हर साठिया यन्त्र ||२७||
यह साठिया यन्त्र ज्वर ताप एकान्तर तिजारी आदि के मिटाने के काम में आता है इस तरह के डोरे घागे व यन्त्र बनवाने की प्रथा छोटे गावो मे विशेष होती है और जो लोग जिसमे श्रद्धा रखते
यन्त्र न. २७
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