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लघुविद्यानुवाद
ॐ नमो लडी लडगीही मे द्र ेई मसारण हिडई नागी पडर केशी मुहई विकराली श्रमकडा वी गई पीडा चाल माजी मराती केर उरभ सई श्रमकडा के गई पीडा करें सही मात लडी लडगी तोरी शक्ति फुरई मेरी चाडसरई हु फट् स्वाहा ॥२५३॥
पर को हानि पहुचाने रूप क्रिया होने से यत्र की विधि समाप्त कर दी गई है ।
यन्त्र न, २५४
ॐ
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ॐ घटा कर्ण महावीर
नाकाने मरण नस्य च सर्पण उत्यते विस्फोटक भय नारित
अग्नि चोरभय
नास्ति श्री शक सम्भयः
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घटा कर्णे
रतश्मदा मल यत्र त्यतिष्टते
यह यन्त्र घटा कर कल्प का है । इस यन्त्र को अष्टगन्ध से भोजपत्र पर लिखकर मन्त्र का साढे बारह हजार जप विधिपूर्वक करे तो सर्वकार्य की सिद्धि होती है । विशेष विधि घटा कर्ण कल्प मे देख लेवे ॥ २५४॥
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जिनका मन है, तप जिसकी आत्मा है विद्या जिनकी वाणी है, ज्ञान जिनका चरित्र है, परोपकार जिनका कर्म है, दया जिनका धर्म है, सेवा जिनकी माता हे धर्म जिनका पिता है, सहयोग
जिनका भाई हे शाति जिनको पत्नी है, पुरुषार्थ जिनका पुत्र है, भाग्य जिनका मित्र है, प्रभु भक्ति जिनका जीवन है और साहस जिनका शस्त्र है ऐसे महापुरुष गुणो से रहित होकर मनुष्य हुए भी तो क्या श्रोर जीये भी तो क्या ?
साथी है, धैर्य जिनका विरले ही होते है इन