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लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :- सोहु आकारणी पहुया घालिरे जंप जारे जरा लंकि लीजइ हणुया नांउ हरसं करची श्रगन्या श्री महादेव भराडाची श्रगन्या देव गुरु ची प्रगन्या जारे जरा लंकि ।
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विधि :- दशवड सूत्र मे दस गाठ लगावे, दस बार मन्त्र पढे, फिर उस सूत्र को गले मे या हाथ मे बाँधे तो वेला ज्वर, एकातर ज्वर, द्ववान्तर ज्वर, त्र्यतर ज्वर, चतुर्थ ज्वर नष्ट होता है । इसी प्रकार गुगुल मन्त्रित करके जलाने से भी ज्वर का नाश होता है।
मन्त्र :- ॐ चंड कपालिनी शेषान् ज्वरं बंध सईल ज्वरं बंध वेला ज्वरं बंध विषम ज्वरं बंध महा ज्वरं बध ठः ठः स्वाहा ।
— इस मन्त्र से कुसु भ रग के डोरे मे मन्त्र २१ बार पढता हुआ ७ गाठ लगावे फिर गले मे या हाथ मे बाधे तो सर्व ज्वर का नाश होता है ।
- कालिया ज्वर वेताल नारसिंह खय काल क्षी क्षीरणी अमुकस्य नास्ति
ज्वरः ।
विधि
-वार २१ चापडी वादने ज्वरोयाति ।
मन्त्र -- सप्त पातालु सप्त पाताल प्रमाणु छइ वालु ॐ चालिरे वालु जउ लगि राम लावण के वाणु छोनि घातिय हिलउ ।
विधि
मन्त्र
विधि - इस मन्त्र से जगली कडे की राख और अक्षत मन्त्रित कर देने से स्तन की पीडा ठीक होती है ।
मन्त्र :- ॐ नमो भगवते प्रादित्याय सर २ प्रागच्छ २ इमं चक्षुरोगं नाशय २ स्वाहा ।
विधि - कुमारीकत्रीत सूत्र को लेकर ७ वड कर,
फिर मयूर शिखा को केशर मे रग कर उस डोरा मे मयूर शिखा को बाधे, फिर इस मन्त्र से २१ बार मन्त्रित करके कान मे बाधने से चक्षु रोग का नाश होता है ।
मन्त्र
- ॐ ज्येष्ट श्रक्रवारिणि स्वाहा ।
विधि - इस मन्त्र से कुमारी सूत्र को सात वड करके सात गाठ लगावे, फिर उस डोरे को कमर मे बाधने से वीर्य का स्तम्भन होता है।
रं हं तं सिद्ध श्रां यंरियं जं वं झां यं सां हुं च ।
विधि :- एयाणि विदु मत्ता सहियारिग हवति सोलसवि १ सोलससु अक्खरेसु इक्कि क्व
मन्त्र :
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