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विधि
मन्त्र
लघुविद्यानुवाद
पचमो नास्ति कलिंग प्रिये वात हरस्या अधो मुखी देवी नव शिर-घरे छत्री हरिय भट्ठ धरिय उसव्वसभावाइं खीलउ परमथि प्रापणी पर मुद्र दी घी जग वाउ भमर वाउ दु वाउ रक्त वाउ राघरिण सव्ववाउ सिद्धिहि जाउ ।
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- इस मन्त्र से प्रत्येक प्रकार के वात रोग ठीक होते है । मन्त्र पढते जाये और झाडा देते जाये ।
-- ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय धरणेन्द्रयपद्मावति सहिताय किनर कि पुरुषाय गरुड गधर्व महोरग यक्षराक्षस भूत पिशाच शाकिनीना सर्वमूल व्याधि विनाशाय काला दुष्ट विनाशाय वज्र सकल भेदनाय वज्र मुष्टि स चूर्णनाय महावीर्य पराक्रमाय सर्व मन्त्र रक्षकराय सर्वभूत वश कराय ॐ हन २ दह २ पच २ छिन्नय २ भिन्नय २ मुच्चय २ धरणेन्द्र पद्मावति स्वाहा ॐ नमो भगवते हनुमताय कपिल पिगल लोचनाय वज्रॉगमुष्टि उद्दीपन लकापुरी दहन वालि सुग्रीव अजरण कुक्षि भूषरण आकाश दोष बधि २ पाताल दोष वधि २ मुद्गल दोप वाँधि एकाहिक द्वयाहिक व्याहिक चातुर्थिक नित्य ज्वर वात ज्वर धातु ज्वर प्रेत ज्वर श्लेत्म ज्वर सर्व ज्वरान् सर्वेदह २ सर्वैहन २ ही स्वाहा कोइलउ कट ग्रलउ पुज्जित्तउ फुल्ल ववालु आापरणी शक्ति प्रागली खेलावइ हीमवेत्तालु चल्लावइ एक जाति चालि छन्न चालि प्रकट चालि जर उत्रोडि त्रोउ वोडि चउरासी दो कोइल हरण वापुशक्ति कोइलावी रत्तणी ३ ।
विधि - एभिस्त्रिभिमर्त्रे प्रत्येक कलपानीये कृते पायित्ते सर्वे दोपा उपशाम्यसि, एकैकेन वार ७ श्रभिमन्यतया खटिकया नव शरावे, ठ, कारे लिखिते ऊसोसाधोत च निद्रा समायाति
ॐ सयुंक्त नमस्कार पद पत्रक लिखित्वा चिटिया बढानवर क्षति मातृका नमस्कार वाचक लिखित्वा तच्चिष्टि काउ छीप दो वृतान्त्री सुप्तस्य नर्वोपद्रवान्नाशयति । इन मन्त्र की विधि का भाव विशेष नमक मे नही प्राता है।