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( १५ ) विषय परिचय
लब्धिसार की प्रथम ८८ गाथाओं मे क्षयोपशम-विशुद्धि-देशना प्रायोग्य एवं करण रूप पाच लब्धियो का सविस्तर वर्णन करते हुए प्रथम तीन लब्धियो का स्वरूप मात्र एक-एक गाथा मे ही कर दिया है। प्रायोग्य लब्धि के अन्तर्गत ३४ बन्धापसरण और उन अपसरणो मे बन्ध से व्युच्छिन्न होने वाली प्रकृतियो का कथन १५ गाथाओ मे किया गया है। इसके पश्चात् सात गाथाओ द्वारा प्रायोग्यलब्धि मे उदय व सत्त्व योग्य प्रकृतियो का कथन किया है। तदनन्तर ५६ गाथाओ मे करणलब्धि के विवेचन को प्रारम्भ करते हुए प्रध:करण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण लब्धियो का कथन किया है। इसके पश्चात् गाथा १०६ तक उपशम सम्यक्त्व आदि के प्रकरण मे होने वाले अनुभाग काण्डकादि कालो का अल्पबहुत्व तथा प्रथमोपशम सम्यक्त्व से गिरने आदि का सर्व कथन पाया जाता है। गाथा ११० से दर्शनमोहनीय कर्म की क्षपणा का कथन प्रारम्भ होता है उसके अन्तर्गत अनन्तानुबन्धी कषाय चतुष्क की विसयोजना का कथन गाथा ११२-११६ तक किया गया है। तदनन्तर गाथा १६६ तक क्षायिक सम्यक्त्व का प्रकरण है। १६७वी गाथा से प्रारम्भ होकर गाथा १८८ तक देशसयमलब्धि का कथन सविस्तर किया गया है । देश सयमलब्धि अधिकार के पश्चात् गाथा १८६ से सकलसयमलब्धि का वर्णन प्रारम्भ हुआ है । तदनन्तर गाथा २०५ से चारित्र मोहोपशामनाधिकार प्रारम्भ हुआ है, उसके अन्तर्गत १४ गाथाओ द्वारा द्वितीयोपशम सम्यक्त्व का कथा
का कथन है। गाथा २२० से ३६१ तक श्रेण्यारोहण और श्रेण्यावरोहण की अपेक्षा उपशम चारित्र का सविस्तर कथन प्राचार्यदेव ने किया है। इस प्रकार लब्धिसार ग्रन्थ मे सर्व ३६१ गाथाओ मे पंचल ब्धियो का पूर्ण विवेचन प्रस्तुत करने के पश्चात् ३६२ से ६५३ तक ३६१ गाथाम्रो द्वारा क्षपणासार मे चारित्रमोहनीय कर्म की क्षपणा के सविस्तर कथन पूर्वक ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन घातिया कर्मों के क्षय का विधान बताते हुए नाम-गोत्र-वेदनीय इन तीन अघातिया कर्मों के क्षय का विधान निरूपित किया गया है। इसके साथ ही केवली समुद्घात, योग निरोध, अर्हन्त व सिद्ध भगवान के सुख का भी विवेचन भी प्रसग प्राप्त होने से किया गया है।
इस प्रकार लब्धिसार-क्षपणासार मे प्रतिपादित विषय का परिचय अति सक्षिप्त में दिया गया है विस्तृत विवेचन ग्रन्थ अध्येता स्वयं अध्ययन कर ग्रन्थ से जानने में सक्षम होगे अत. प्रस्तावना मे विस्तारपूर्वक विषय परिचय 'पिष्ट पेषण' के भय से नही दिया गया है । लब्धिसार-क्षपणासार ग्रन्थ की प्रस्तुत टीका एवं उसके प्राधार
लब्धिसार की सिद्धान्त बोधिनी एवं क्षपणासार की कर्म क्षपणबोधिनी टीका, इस प्रकार लब्धिसार-क्षपणासार ग्रन्थ की नवीन टीका का यह नामकरण किया गया है। यद्यपि पंडित प्रवर टोडरमलजी की सुबोध हिन्दी टीका सहित लब्धिसार की सस्कृतवृत्ति युक्त लव्धिसार का प्रकाशन 'जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी सस्था' कलकत्ता से प्रकाशित हुआ था जो इस समय उपलब्ध नहीं है। संस्कृत वृत्तिकार ने प्राय: जयधवल टीका का अनुसरण किया है। हिन्दी टीकाकार के समक्ष जयधवल टीका नही थी अत पडितजी ने सस्कृत वृत्ति का मात्र हिन्दी अनुवाद किया है। लब्धिसार का प्रकरण जयधवल पु १२ व १३ मे चरिणसूत्र समन्वित जयधवला टीका के हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित हो चुका है । हां! गाथा ३०८ से ३६१ तक का प्रकरण, जिसमे उपशम थरिण से गिरने तथा मानादि कषायो व स्त्रीवेदादि सहित उपशम श्रोणि प्रारोहण का कथन भी पाया जाता है