Book Title: Labdhisara Kshapanasara
Author(s): Ratanchand Mukhtar
Publisher: Dashampratimadhari Ladmal Jain

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Page 16
________________ ( १४ ) :rm गम गन्य को मैने अपने बुद्धिवैभव से सिद्ध किया है। षटखण्डागम के अतिF: " : (चलिमय महित) तिलोयपण्णत्ति आदि ग्रन्थो के भी आप पारगामी विदृच्छि नायकान्दी सिद्धान्त ग्रन्थो के सारस्प मे प्रापने गोम्मटसार जीवकाण्ड-कर्मकाण्ड, मागार तथा निलोकसारादि ग्रन्यो का प्रणयन किया है। पाने ही निता जा चुका है कि लब्धिसार-क्षपणासार की रचना का मूलस्रोत ग्रन्थ ग रहा है। गुणवराचार्य कृत इस ग्रन्थ पर चूणिसूत्र यतिवृषभाचार्य ने रचे और मान्चित रूपायपाहड की ६०००० श्लोक प्रमाण वाली जय धवला टीका लिखी गई है। मातमाय नन्द के एक तिहाई भाग (१०वें १५वे तक ६ अधिकार) को ६५३ गाथाम्रो मे रिया जाना ही नेमिचन्द्राचार्य के बुद्धि वैभव का उद्घोप करता है । यह कोई साधारण प्रयासमपफाल गोमटमार अन्य को कर्णाटकीय प्रादि वृत्ति के कर्ता केशववर्णी आदि अपने प्रारम्भिक नमें गिने हैं कि श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने अनेक उपाधि विभूषित चामुण्डराय के famमिद्धान्त ग्रन्य (पट्खण्डागम) के अाधार पर गोम्मटसार ग्रन्थ की रचना की। स्वय पागादेव ने ही गो क. की अन्तिम प्रशस्ति मे राजा गोम्मट अर्थात् चामुण्डराय जयकार किया नागय गगनरेश श्री राचमल्ल के प्रधानमन्त्री एव सेनापति थे। चामुण्डराय ने अपना ग" " पुराग शक म ६०० तदनुसार वि स १०३१ मे पूर्ण किया था। राचमल्ल का राज्यमाथि १०८? तक रहा है ऐसा ज्ञात होता है। वाहुबली चरित मे गोम्मटेश की प्रतिष्ठा का माम1०७-१८ बतलाया है। गोम्मटेश की प्रतिष्ठा मे स्वय नेमिचन्द्राचार्य उपस्थित थे। मनन्द्रानायं का काल विक्रम की ११वी शताब्दी सिद्ध होता है । सागर गुप मोगार को अन्तिम गाथा मे श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने अपने आपको अभय यि पहा है। इसके अतिरिक्त प्राचार्य वीरनदि, इन्द्रनन्दि तथा कनकनन्दि का भी सा नाय उल्लेग किया है। गोम्मटसार कर्मकाण्ड की निम्न गाथा के प्रकाश मे ग्रन्थदीपा गुरूमा प्रामाम मिलता है गाथा इस प्रकार है जम्म य पायपनाएरणगतमसारजलहि मुत्तिण्णो। नाग्दिरणदिवच्छो गमामि त अभयरणदि गुरु ॥४३६।। जनमोरन्दनन्दिका क्रम जिनके चरणप्रसाद से अनन्त ससाररूपी सागर से उत्तीर्ण -: ममता को में (नेमिचन्द्र) नमस्कार करता हु । अनन्त ससार रूपी सागर से .......TTमात्राय दीक्षा मे ही है । अतः ऐसा लगता है कि उनके दीक्षागुरु अभयनदि हैं । : ५५५. श्री मिनाचार्य ने इन्द्रनन्दि वीरनन्दि प्रादि प्राचार्यों का भी गुरु रूप मे स्मरण 1. RTI मुदेनामपरादियण । १t Animl एम एतापरिपा ।।१०१८।।

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