Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): 
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 10
________________ ८. भाव कुलक भाव के बिना दान, शील, तप में रंग नहीं आ सकता । 'भावना भवनाशिनी' इस हकीकत के दृष्टांत दिये गये हैं । मणि, मंत्र और औषधियां भी भाव से ही फलित होती हैं । प्रसन्नचन्द्र राजर्षि को एक मुहूर्त में ही केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी । मृगावती, इलापुत्र, कुरगड, मासतुष मुनि, मरुदेवी माता, अणिका पुत्र, ५०० तापस, पालक आदि महात्माओं को भाव से ही केवल्य प्राप्त हुआ था । कपिल सुनि को जातिस्मरण ज्ञान हुआ । आत्मा का शुद्ध भाव ही परम तत्र है । भाव और श्रद्धा धर्म साधक है । भाव ही सम्यक्त्व का बीज है । ९. अभव्य कुलक जिनको कमी मोक्ष प्राप्त न हो सके ऐसे अभव्यजन को भाव का स्पर्श तक नहीं हो सकता । अभव्य जीवों को ३५ वस्तुएँ प्राप्त नहीं होती । ये पैंतीस वस्तुयें यहां गिना दी गई है । वह जिनेश्वर कथित अहिंसा भाव को भी प्राप्त नहीं कर सकता ! १०. पुण्य-पाप कुलक पुण्य करने से देवगति का और पाप करने से नरकगति का दीर्घकालीन आयुष्य प्राप्त होता है ।

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