Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): 
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 9
________________ ५. दानमहिमा कुलक अभयदान, अनुकंपादान, सुपात्रदान आदि दान कर्मों से मनुष्य को सौभाग्य, आरोग्य कीति, कान्ति, धन-वैभव आदि प्राप्त होते हैं । दान के कारण ही शालिभद्र ऋद्धि संपन्न हुए थे । दान से ही पुण्य की प्राप्ति होती है। ६. शीलमहिमा कुलक शील की सुरक्षा करने से पुरुष और स्त्रियों को क्या क्या लाभ हुआ उसका विस्तार से वर्णन है । भ० नेमिनाथ, राजिमती, सुभद्रा, नर्मदासुन्दरी, कलावती, स्थूलभद्र मुनि, वज्रस्वामी, सुदर्शन श्रेष्ठी, सुन्दरी, सुनन्दा, चेल्लणा, मनोरमा, अञ्जना, मृगावती आदि सतीयां और महापुरुषों के उदाहरण देकर उपदेश दिया गया है । ७. तप कुलक तप और स्वाध्याय से कर्ममल जलकर भस्मसात् हो जाता है। उससे लब्धियां और केवलज्ञान की प्राप्ति होती है । तपस्या से बाहुबलि को कैवल्य प्राप्त हुआ, गौतमस्वामी को अक्षीण महानसीलब्धि और सनत्कुमार को खेलौषधि लब्धि प्राप्त हुई थी। दृढप्रहाी जैसा घातकी मनुष्य भी तपस्या के प्रभाव से शुद्ध सात्त्विक बन गया था। नंदिषेण मुनि तपस्या से वासुदेव हुए थे । ऐसे कई दृष्टान्त देकर स्वाध्याय की महिमा बताई है।

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