Book Title: Kulak Sangraha Author(s): Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir View full book textPage 7
________________ 5 उपोद्घात । जैन साहित्य उपदेशात्मक कई ग्रन्थों से भरा पड़ा है। कई कथा ग्रन्थ भी इसके लिये रचे गये हैं। उपदेश का प्रकार और आकार भी अनेकविध है। उसमें कुलक भी एक प्रकार है। इस कुलक संग्रह में कुल २२ कुलक हैं । सामान्यतः जिसमें एक क्रियापद का उपयोग हुआ हो ऐसे पांच और उससे अधिक पद्यों के समूह को 'कुलक' कहा जाता है, परन्तु यहां यह व्याख्या घटती नहीं हैं । इस संग्रह में वैराग्यगभिंत उपदेश के पांच से अधिक पद्यों के समूह को- गुच्छ को कुलक नाम दिया गया हो ऐसा मालूम पड़ता है । सभी कुलक प्राकृत भाषा में हैं चार-पांच सिवाय दुसरे कुलकों के कर्ता का निर्देश नहीं है। कुलकों की भाषा से कह सकते हैं कि ये सब रचनायें पंदरहवीं शताब्दी के आसपास की हो ऐसा अनुमान है। कम से कम है पद्य और ज्यादा से ज्यादा ४७ पद्यों वाला कुलक है । सूची पर से कुलकों का विषय, पद्य संख्या और कर्ता के विषयPage Navigation
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