________________
(८)
१-चप्पभट्टसूरि को वादी-कुजर-केसरी बप्पभट्टसूरि ।। २-शान्तिसूरि को-वादीवेवाल शान्तिसूरि । ३०-देवसूरि को-वादी-देवसूरि । ४-धर्मघोषसूरि को-वादी चूडामणि धर्मघोषसूरि । ५-अमरचन्द्रसूरि को-सिंहशिशुक अमरचन्द्रसूरि । ६-आनन्दसूरि को व्याघ्रशिशुक अानन्दसूरि । ७-सिद्धसूरि को-गुरुचक्रवर्ति सिद्धसूरि । ८-जगधन्द्रसूरि को-तपा जगचन्द्रसूरि । ९-हेमचन्द्रसूरि को-कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि । १०-कक्कसूरि को-राजगुरु कक्कसूरि । ११-विजयसिंहसूरि को-खड्गाचार्य विजयसिंहसूरि । १२-नेमिचन्द्रसूरि को सिद्धान्तचूड़ामणिनेमीचन्द्रसूरि
इत्यादि अनेक जैनाचार्यों ने बड़े २ राजा महाराजाओं द्वारा विरुद प्राप्त किये थे जब जिनेश्वरसूरि के खरतर विरुद ने कौन सी गुफा में समाधि ले रखी थी कि खुद जिनेश्वरसूरि ने पंचलिंगीप्रकरण, वीरचरित्र, निर्वाण लीलावती, कथाकोश, प्रमाण लक्षण, षट्स्थानप्रकरण, हरिभद्रसूरिकृत अष्टकों पर बृति, आदि अनेक प्रन्थों को रचना की इन ग्रन्थों का रचना काल वि० सं० १०८० से १०९५ तक का है जिसमें पाटण के शास्त्रार्थ एवं खरतर शब्द की गन्ध तक भी नहीं हैं।
-जिनेश्वरसूरि के गुरुभाई बुद्धिसागरसूरि ने बुद्धिसागर व्याकरणादि कई प्रन्थ लिखे पर उसमें इशारा मात्र नहीं किया कि जिनेश्वरसूरि ने वि० सं० १०८० में पाटण के दुर्लभराजा