Book Title: Khartar Matotpatti
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala

View full book text
Previous | Next

Page 149
________________ है । कारण, दोकरण तीनयोग से जैसे सामायिक है वैसे ही दोकरण तीन योग से पोषध है तब निद्रा लेने से पौषधव्रत का भंग नहीं होता है तो सामायिक का कैसे भंग हो जाता है । यदि ऐसा ही है तो साधु के तीनकरण तीनयोग से सामायिक है और वे भी संथारा पौरसी भणा के निद्रा लेते हैं, इतना ही क्यों पर उत्तराध्ययनसूत्र के २६ वें अध्याय में ऐसा भी कहा है कि साधु रात्रि के समय पहले पहर में स्वाध्याय करे, दूसरे पहर में ध्यान करे, तीसरे पहर में निद्रा ले और चौथे पहर में पुनः स्वाध्याय करे। अतः श्रावक पौषध में संथारा पौरसी भणाकर प्रमादनिवार्थ निद्रा ले तो उसके न तो पौषधंव्रत का भंग होता है और न सामायिकवत का ही भंग होता है। ४-पौषध में तीन वार देववन्दन करने का शास्त्रों में विधान है पर खरतरे दो वक्त ही देववंदन करते हैं। ५-प्रतिक्रमण १-अतिचारों में सात लाख तथा अठारह पापों का विधान है पर खरतरों ने 'ज्ञान दर्शन' आदि नया ही विधान मिला दिया है। जिससे पुनरुक्ति दोष लगता है। २-तीसरा आवश्यक की मुहपत्ति का आदेश लेने का कहीं भी विधान नहीं है पर नये मत में यह एक नयी प्रथा कर डाली है कि तीसरा आवश्यक की मुहपत्ति का आदेश मांगते हैं। ३-वंदितुसूत्र में 'तस्स धम्मस्स केवलि पन्नत्तस्स' यह पाठ प्रकट बोलने का है पर खरतर इस पाठ को स्पष्ट बोलने की मनाई करते हैं और धीरे से चुपचाप बोलते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166