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( १८ ) , संडिल २६ ,, संभूतिदीन , जिनभद्र ,, हेमवन्त | २७ ,, लोकहित
,, हरिभद्र
,, देवाचार्य ,, नागार्जुन २८ ,, दुष्यगणि३३ ,, नेमिचन्द्रसूरि ,, गोविन्द · । २९ ,, उमास्वाति । ३४ ,, उद्योतनसूरि
__ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृष्ठ २१८ यह पट्टावली शांतिसूरि शाखा की है न कि चान्द्रकुल की। एक दूसरी शान्तिसूरि की पदावली है जिसमें भी नामक्रम नहीं मिलते हैं । ऊपर की पट्टावली के नम्बर ११ तक ठीक हैं परन्तु वहां से आगे के नाम ठीक नहीं मिलते हैं । देखिये नं० १२-१३ १४ के आचार्य ऊपर की पट्टावली में हैं तब दूसरी पट्टावली में पूर्वोक्त नाम नहीं हैं । इसी प्रकार शान्तिसूरि की शाखा की जितनी पदावलियां खरतरों ने लिखी हैं वे सब इस प्रकार गड़बड़ वाली हैं। - दूसरे कई खरतरों ने चान्द्रकुल शाखा के नामों से भी पट्टा वलियां लिखी हैं उसमें भी नामों की बड़ी गड़बड़ है कि जैसे शान्तिसूरि की शाखा के नामों की पट्टावलियों में है। इससे स्पष्ट पाया जाता है कि खरतर मत्त एक समुत्सम पैदा हुआ मत है और इसका अस्तित्व जिनवल्लभसूरि के पूर्व कहीं भी नहीं मिलता है जैसे बिना बाप के पुत्र से उसके पिता का नाम पूछो तो वह जी चाहे उसका ही नाम बतला सकता है । यही हाल खरतरों का है । खरतरों की पट्टावलियों के विषय में मैं एक स्वतन्त्र पुस्तक लिखकर थोड़े ही समय में आपकी सेवा में उपस्थित कर दूंगा । पाठक थोड़े समय के लिये धैर्य रखें।