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१६ - खरतर मत
१ - आचार्य जिनेश्वरसूरि और अभयदेवसूरि शुद्ध चान्द्र-कुल की परम्परा में हैं ऐसा खुद श्रभयदेवसूरि ने अपनी टीका में लिखा है, पर आधुनिक खरतर इन श्राचार्य को खरतर बनाने का मिथ्या प्रयत्न कर रहे हैं। देखो खरतर मतोत्पत्ति भागः १-२-३ ।
२ - यह बात निश्चित हो चुकी है कि खरतर मत की उत्पत्ति जिनदत्तसूरे की प्रकृति के कारण हुई है, पर खरतरलोग कहते हैं कि वि० सं० १०८० में पाटण के राजा दुर्लभ की राज. सभा में जिनेश्वरसूरि और चैत्यवासियों के आपस में शास्त्रार्थ हुआ, जिसमें जिनेश्वरसूरि खरा रहने से राजा ने उनको खरतर विरुद दिया इत्यादि, पर यह बात बिल्कुल जाली एव बनावटी है कारण खास खरतरों के ही ग्रन्थ इस बात को झूठी साबित कर रहे हैं जैसे कि :
१ - खरतरों ने जिनेश्वरसूरि के शास्त्रार्थ का समय वि सं १०२४ का लिखा है पर उस समय न तो जिनेश्वरसूरि ने अवतार लिया था और न राजा दुर्लभ का जन्म ही हुआ था । - अगर खरतर कहते हों कि वि० सं० १०२४ लिखना तो हमारे पूर्वजों की भूल है पर हम १०८० का कहते हैं तो भी बात ठीक नहीं जचती, क्योंकि पाटण में राजा दुर्लभ का राज वि० सं० १०७८ तक ही रहा ऐसा इतिहास स्पष्ट जाहिर कर रहा है ।
२.
३ - खरतरों ने उद्योतनसूरि, वर्द्धमानसूरि को भी खरतर लिखा है इससे भी जिनेश्वरसूरि को खरतर विरुद मिलना मिथ्या