Book Title: Khartar Matotpatti
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala

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Page 163
________________ ( १९ ) खरतरमतोत्पत्ति विषय एक और भी प्रमाण पं० हीरालाल हंसराज जामनगर वालों ने अपने "जैनधर्म नो प्राचीन इतिहास भाग बीजो" नामक ग्रन्थ के पृष्ट १८ पर महोपाध्याय धर्मसागरजी महाराज की 'प्रवचन परीक्षा' का प्रमाण देते हुए गुजराती में खरतर-गच्छ के विषय में जो कुछ लिखा है उसका सार यह है कि * जिनदत्तसूरि के बनाए हुए गणधर सार्द्धशतक नामक ग्रन्थ पर जिनपतिसूरि के शिष्य सुमतिगणि ने वृहवृत्ति रची है जिसके एक पैरेग्राफ में जिनवल्लभसूरि का वर्णन है जिसमें जिनवल्लभसूरि ने चित्तौड़ के किले में रह कर भगवान महावीर के गर्भापहार नामक छठे कल्याणक की प्ररूपना की इत्यादि । दूसरे पैरेग्राफ में जिनदत्तसूरि के विषय में लिखा है कि जिनदत्तसूरि का स्वभाव ऐसा था कि उनको कोई भी व्यक्ति प्रश्न पूछता तो वे मगरूरी के साथ उत्तर देते थे; इसलिये उनको लोग खरतर ; खरतर कहने लग गये थे; अतः खरतर मत की उत्पत्ति वि० सं० १२०४ में जिनदत्तसूरि से हुई। इस विषय में पाश्चात्य संशोधकों का भी यही खयाल है कि खरतर मत की उत्पत्ति वि० सं० १२०४ में जिनदत्तसूरि से ही हुई है जैसे किः गणधर सार्द्धशतक प्रन्थ के रचयिता जिनदत्तसूरि थे और उनका स्वर्गवास वि० सं० १२११ में हुआ तब उस पर वृहद्वृत्ति निर्माण-कर्ता सुमति गणि के गुरु जिनपतिसरि का भाचार्य पद का समय वि० सं० १ २२३ का है, अतः उस मूल ग्रन्थ और उस पर वृहद्वृत्ति का समय निकटवर्ती कहा जा सकता है।

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