Book Title: Khartar Matotpatti
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala

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Page 161
________________ साबित होता है क्योंकि वर्द्धमानसूरि जिनेश्वरसूरि के गुरु और वर्द्धमानसूरि के गुरु उद्योतनसूरि थे जब कि उद्योतनसूरि और वर्द्धमानसूरि ही खरतर थे तो जिनेश्वरसूरि के लिये खरतर विरुद मिलना लिखना तो स्वयं मिथ्या साबित हो जाता है। ____३-खरतर आप अपने को चान्द्रकुल के होने बतलाते हैं पर खरतरों की कई पट्टावलियों से वे चन्द्रकुल के होने साबित नहीं होते हैं, उन पट्टावलियों से एक पट्टाबली केवल नमूना के तौर पर यहां उद्धृत करदी जाती है। ___पट्टावलियों में सौधर्माचार्य से सुहस्तीसूरि तक के नाम तथा उद्योतनसुरि के बाद के नाम तो ठीक मिलते मुलते हैं पर सुहस्ती से उद्योतनसूरि तक के बीच के आचार्यों की नामाबली में इतना अन्तर है कि किसी ने कुछ लिख दिया तो किसी ने कुछ लिख दिया है । इस समय खरतरों की बारह पट्टावलियां मेरे पास मौजूद हैं, पर उसमें शायद् ही एक पट्टावली दूसरी पट्टावली से मिलती हो । देखिये नमूना । चरित्रसिंह कृत (२) गुर्वावली १ आचार्य सुहस्ती । ८ , गुप्त १५ ,, वज २ , शांतिसूरि ९ , समुद्र । १६ ,, रक्षित ३ ,, हरिभद्र १०,, मंगु । १७ ,,दुर्वलि का पुष्प ,, स्यामाचार्य , सुधर्म ,, नन्दी ,, संडिलसूरि १२,, हरिवल १९ , नागहस्ती ६ ,, रेवतीमित्र | १३ ,, भद्रगुप्त २० ,, रेवती ७ , धर्माचार्य । १४ ,, सिहमिरि ,, ब्रह्मद्वीपि

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