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१८ - जगचिन्तामणि के चैत्यवंदन में भी खरतरों ने न्यूनाधिक कर दिया है जैसे कि
" सत्ताणवइ सहस्सा, लक्खा छप्पन्न अठ्ठ कोडीओ । बत्तिय बासिआई, तिअलोए चेइए वंदे ॥ पनरस कोडिसयाई, कोडी बायाल लक्ख अडवन्ना । छत्तीस सहस असिई, सासयबिंबाई पणमामि ॥"
इसके बदले में खरतरों ने दो गाथा इस प्रकार लिख दी हैं । सत्ताणवइ सहस्सा, लक्खा छप्पन्न अड्ड कोडीओ । चउसय छायासीया, तिअलोए चेइए वंदे ॥ वन्दे नवकोडिसयं, पणवीसं कोडि लक्ख तेन्ना । अट्ठावीस सहस्सा, चउसय अट्टासिया पड़िमा || "
१९ - और भी कई ऐसी बातें हैं कि खरतरे परम्परा से 'विरुद्ध करते हैं जैसे कि
१ - प्रतिक्रमण के आदि में 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन्' कहना शास्त्रों में कहा है तब खरतर इसको नहीं कहते हैं । ( शुद्ध समाचारी प्रकाश पृष्ट १८५ )
२ - प्रतिक्रमण में साधु श्रयरिय उवज्जाये तीन गाथा कहते हैं परन्तु खरतर नहीं कहते हैं ।
( शुद्ध समाचारी पृष्ट १६६ )
१' खामणाणिमित पडिक्क्रमणणिवेदणथतं वदंति ततो आयरियमादी पक्किमणतमेव दंसेमाणा खामेति । उक्तच भायरिय उवजाए सीसे साहम्मिए कुल गणेवा' इत्यादि गाथात्रिक पढ़ने को कहा है ।
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