Book Title: Khartar Matotpatti
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala

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Page 159
________________ ( १५ ) १८ - जगचिन्तामणि के चैत्यवंदन में भी खरतरों ने न्यूनाधिक कर दिया है जैसे कि " सत्ताणवइ सहस्सा, लक्खा छप्पन्न अठ्ठ कोडीओ । बत्तिय बासिआई, तिअलोए चेइए वंदे ॥ पनरस कोडिसयाई, कोडी बायाल लक्ख अडवन्ना । छत्तीस सहस असिई, सासयबिंबाई पणमामि ॥" इसके बदले में खरतरों ने दो गाथा इस प्रकार लिख दी हैं । सत्ताणवइ सहस्सा, लक्खा छप्पन्न अड्ड कोडीओ । चउसय छायासीया, तिअलोए चेइए वंदे ॥ वन्दे नवकोडिसयं, पणवीसं कोडि लक्ख तेन्ना । अट्ठावीस सहस्सा, चउसय अट्टासिया पड़िमा || " १९ - और भी कई ऐसी बातें हैं कि खरतरे परम्परा से 'विरुद्ध करते हैं जैसे कि १ - प्रतिक्रमण के आदि में 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन्' कहना शास्त्रों में कहा है तब खरतर इसको नहीं कहते हैं । ( शुद्ध समाचारी प्रकाश पृष्ट १८५ ) २ - प्रतिक्रमण में साधु श्रयरिय उवज्जाये तीन गाथा कहते हैं परन्तु खरतर नहीं कहते हैं । ( शुद्ध समाचारी पृष्ट १६६ ) १' खामणाणिमित पडिक्क्रमणणिवेदणथतं वदंति ततो आयरियमादी पक्किमणतमेव दंसेमाणा खामेति । उक्तच भायरिय उवजाए सीसे साहम्मिए कुल गणेवा' इत्यादि गाथात्रिक पढ़ने को कहा है । *

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