Book Title: Khartar Matotpatti
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala

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Page 154
________________ ( १० ) क्षय करके दूसरे दिन चौदस और तीसरे दिन पूर्णिमा का पर्व - आराधन करना चाहिये । यदि तिथि की वृद्धि हो तो पूर्व की तिथि को वृद्धि करके दूसरी तिथि को पर्व तिथि मानना चाहिये जैसे अष्टमी दो हों तो पहली अष्टमी को दूसरी सातम समझना और पूर्णिमा दोहों तो तेरस दो समझना ऐसा शास्त्रकारों का स्पष्ट मत है, पर खरतरों का तो मत ही उलटा है कि वे अष्टमी का क्षय होने से का पर्व नौमी को करते हैं कि जिसमें अष्टमी का अंश मात्र भी नहीं रहता है तथा अष्टमी की वृद्धि होने से पहली अष्टमी को पर्व मानते हैं फिर भी विशेषता यह है कि चौदस का क्षय होने पर पाक्षीक प्रतिक्रमण पूर्णिमा का करते हैं जो खास तौर अपनी मान्यता से भी खिलाफ है । १०- पर्व -- १ - अधिक मास को शास्त्रकारों ने कालचूला एवं लुनसास माना है | यदि श्रावण मास दो हों तो प्रथम श्रावण को लुनमास मझ कर सांवत्सरिक प्रतिक्रमण भाद्रपद में ही किया जाता है तथा भाद्रपद दो हों तो प्रथम भाद्रपद को लुनमास समझ कर दूसरे भाद्रपद में ही सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करना चाहिये पर खरतरे कार्तिक, फाल्गुन और श्रीसाढ़ मास दो हों तो चतुर्मासिक प्रतिक्रमण दूसरे कार्तिक, फाल्गुन और आसाढ़ में करते हैं तथा श्रश्विन एवं चैत्रमास दो हों तो श्रांबिल की ओलियां दूसरे आसोज एवं दूसरे चैत्र मास में करते हैं। पर श्रावण भाद्रपद मास दो हों तो दूसरा श्रावण या पहिले भाद्रपद में सांवत्सरिक

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