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( ८ ) उस उत्सूत्र की पुष्टि के लिये आगमा के झूठ अर्थ कर भद्रिकों को बहकाते हैं । परं खास खरतरों के माननीय प्रन्थ जिनदत्तसूरि रचित 'गणधरसार्द्धशतक' की वृहद्वृत्ति आदि को नहीं देखते हैं कि वे खुद क्या लिखते हैं जैसे कि
१-चित्तौड़ में जाकर जिनवल्लभसूरि ने चामुण्डा देवी को प्रतिबोध किया और महावीर के गर्भापहारनामक छतु कल्याणक को प्रग किया।
'गणधर सार्द्धशतक लघुवृत्ति" ___२-जिनबल्लभसूरि ने चित्तौड़ में कन्धा ठोककर छट्ठा कल्याणक को प्रकट किया। "गणधर साद्ध शतक वृहवृत्ति"
३-जिनवल्लभसूरि ने चित्तौड़ में चतुर्मास किया वहाँ आश्विनकृष्णत्रयोदशी को महावीर के गर्भापहारनामक छठे कल्याणक के अक्षर सूत्र में मिले अत: उन्होंने वीर के गर्भापहार नामक छट्टा कल्याणक की प्ररूपना की इत्यादि ।
"गणधर साद्ध शतकान्तरर्गत प्रकरण" ... इत्यादि खरतरों के खास घर के प्रमाणों से ही सिद्ध होता है कि जिनवल्लभसूरिने महावीर के गर्भापहार नामक छ? कल्याणक की नयी प्ररूपना की थी। यही कारण है कि उस समय के संविग्नसमुदाय और असंविग्नसमुदाय ने जिनवल्लभ को संघ से बहिष्कृत कर दिया था । इस विषय में देखो खरतरमत्तोत्पत्ति भाग तीसरा ।
-जिन प्रतिमा की पूजा १-जैसा पुरुषों को प्रभुपूजा कर आत्मकल्याण करने का अधिकार है वैसा ही स्त्रियों को भी जिन पूजा कर आत्म.