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( १२ ) इसी भांति एक अधिक मास को भी लुनमास समझ सांवत्सरिक प्रतिक्रमण कर लेना चाहिये । विशेष खुल्लासा देखो 'प्रवचन परीक्षा हिन्दी अनुवाद' नामक ग्रंथ में ।
११-प्रत्याख्यान - १-श्रावक शाम को तिविहार के पच्चखवान करते हैं उनके "लिये रात्रि में कच्चापानी का त्याग नहीं होता है पर खरतर कच्चा पानी पीने वालों को दुविहार के ही प्रत्याख्यान करवाते हैं और कहते हैं कि तिविहार के प्रत्याख्यान करने वालो को रात्रि में अचित पानी पीना चाहिये, फिर ऐसे भी कुर्तक करते हैं कि तिविहार उपवास में भी कच्चा पानी पीना खुल्ला रहता हो तो तिविहार उपवास में भी कच्चा पानी क्यों नहीं पी लिया जाय ? पर उन जैनागमों के अनभिज्ञों को इतना भी ज्ञान नहीं है कि जिस पानी को पीना खुल्ला रक्खा जाता है और उसमें पानी के छः श्रागार कहा जाता है वह अचित पानी पीता है और "जिसको पानी के छः आगार नहीं कहा जाता है वह सचित पानी पी भी सकता है।
२-श्रावकों के तिविहार उपवास तथा एकासना आंबिल के प्रत्याख्यान में पानी के छः आगार कहना लिखे होने पर भी खरतर पानी के आगार नहीं कहते हैं।
अचित भोइयाण सहाण मुणीणंहुति आगारा पाणस्सय छच्चैव उनिसिनो तिविहे सचित्ताण' ॥ लघुप्रवचनसारोद्धार कर्ता चन्द्रसरि मरधार __ तह तिविह पच्चरकाणे भण'तिम पाणग छ आगारा दुविहारे अचित मणो तहयफासुजले' । प्रत्याख्यान भाष्य कर्ता देवेन्द्रसूरि