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( १८ ) भद्रिकों को दीर्घ संसार के पात्र बना दिये और उनके अनुयायी
आज पर्यन्त इस उत्सूत्र प्ररूपना का पक्ष कर अपने संसार की वृद्धि कर रहे हैं।
वल्लभ की उत्सूत्र प्ररूपना से जैनसमाज में बड़ा भारी उत्पात मच गया और क्या सुविहित समाज और क्या चैत्यवासी समाज ने उत्सूत्र प्ररूपक जिनवल्लभ को संघ बाहर कर दिया। देखिये:"असंविग्न समुदायेन संविग्न समुदायः सँघ बहिष्कृतः
___ प्रवचन परीक्षा पृष्ट २४२ इस पर भी वल्लभ ने अपने हठ कदाग्रह को नहीं छोड़ा पर कहा जाता है कि
'हारिया जुवारी दुणा खेले' जिनवल्लभ ने इस गर्भापहार कल्याणक के अलावा भी जिनवचनों में अनेक क्रियाओं की स्थाप उस्थाप करके अपना 'विधिमार्ग' नामका एक नया मत स्थापन कर जैनसमाज में फूट कुसम्प के ऐसे बीज बो दिये कि जिसके फल जैनसमाज आजपर्यन्त चख ही रहा है।
पाठक स्वयं सोच सकते हैं कि यदि वल्लभ उत्सूत्र प्ररूपक नहीं होता और अभयदेवसूरि का पट्टधर होता तो उसको अभयदेवसूरि के समुदाय से अलग मत निकालने की जरूरत ही क्या थी; अतः जिनवल्लभ उत्सूत्र प्ररूपक था और उसने अभयदेवसूरि के समुदाय से अलग विधिमार्ग नामका नया मत निकाला था।
अब तो जिनवल्लभ के दिल में केवल एक बात ही पूर्ण तौर से खटकने लगी कि इतना होने पर भी मैं आचार्य नहीं बन सका। दो तीन वर्ष तक इस बात की कोशिश में भ्रमण किया परन्तु