Book Title: Khartar Matotpatti
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala

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Page 139
________________ लिए मैंने सेवड़ों के निकालने का हुक्म दे दिया है और सब जगह आज्ञापत्र भेजे गये हैं कि जहाँ कहीं सेवड़ा हो मेरे राज्य में से निकाल दिया जावे।" इस लेख में एक तो लिखा है कि मानसिंह रास्ते में ही डर के मारे जहर खाकर मर गया और दूसरा लिखा है कि मेरे राज में आनेकी मनाई कर दी । इस विषय में खरतर मत वाले क्या. कहते हैं ? ऐतिहासिक जैनकाव्य संग्रह नामक पुस्तक खरतरों की तरफ से हाल ही में मुद्रित हुई है जिसके पृष्ठ १५० पर जिनराजसूरि का गस छपाया है । उसमें लिखा है कि:"बीकानेर' थी चलिया, मनह मनोरथ फलिया। साधु तणइ परिवारइ, 'मेडतई नयरि पधारइ ॥६॥ श्रावक लोक प्रधान, उच्छव हुआ असमान । __श्रीगच्छनायक आयउ, सिगले आनन्द पायउ ॥७॥ तिहाँ रह्या मास एक, दिन-दिन बधतई विवेक । चलिवा उद्यम कीधउ, 'एक–पयाणउ' दीधउ ॥८॥ काल धर्म तिहाँ भेटइ, लिखत लेख कुण मेटई। 'श्री जिनसिंह' गुरुराया, पाछा 'मेडतई काया ॥९॥ सइंमुखि लीधउ संथारउ, कीधउ सफल जमारो । शुद्ध मनइ गहगहता, 'पहिलइ देवलोक' पहुता ॥१०॥" - इस रास में बादशाह मानसिंह ( जिनसिंहसूरी) को बुलाता है और मानसिंह बीकानेर से रवाना हो आगरे जा रहा है।

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