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(४२) विजयी होकर राजधानी आगरे में उपस्थित हुआ तो लज्जित होकर सिर नीचा किये हुए दरबार में आया। शेष वृत्तान्त उसका अपनी जगह पर लिखा जा चुका है। और मानसिंह उन्हीं तीन चार महीने में कोढ़ी हो गया । उसके अंग प्रत्यङ्ग गिरने लगे । वह अब तक अपना जीवन बीकानेर में ऐसी दुर्दशा से व्यतीत कर रहा था कि जिससे मृत्यु कई अंशों में उत्तम थी । इन दिनों में जो मुझको उसकी याद आई तो उसके बुलाने का हुक्म दिया । उसको दरगाह में लाते थे पर वह डर के मारे रास्ते में ही जहर खाकर नरकगामी हो गया।
जब मुझ भगवद्भक्त की इच्छा न्याय और नीति में लीन हो तो जो कोई मेरा बुरा चेतेगा वह अपनी इच्छा के अनुसार ही फल पावेगा।
सेवड़े हिन्दुस्तान के बहुधा नगरों में रहते हैं। गुजरात देश में व्यापार और लेनदेन का आधार बनियों पर है इसलिये सेवड़े यहाँ अधिकतर हैं। ... मन्दिरों के सिवाय इनके रहने और तपस्या करने के लिये स्थान बने हुये हैं जो वास्तव में दुराचार के आगार हैं । बनिये अपनी स्त्रियों और बेटियों को सेवड़ों के पास मेजते हैं लज्जा और शीलवृत्ति बिल्कुल नहीं है। नाना प्रकार की अनीति और निर्लज्जता इनसे होती है। इस