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१६६४ में रायसिंहजी देहली गये उस समय कर्मचन्द मृत्युशय्या पर पड़ा था । अतः ये भी उससे मिलने को गये और उसका अन्तिम समय निकट देख बड़ा शोक प्रकट किया। जब कर्मचंद मर गया तब उसके पुत्रों को भी इन्होंने बहुत कुछ दिलासा दिया ।
इसी बीच वि. सं. १६६२ में बादशाह अकबर मर चुका था और जहांगीर देहली के तख्त पर बैठा था । परन्तु वह भी इनसे नाराज हो गया, इसलिये यह लौट कर बीका“नेर चले आये ।"
भारत के प्राचीन राजवंश भाग तीसरा पृष्ट ३२७ मंत्री कर्मचंद को बीकानेर नरेश ने क्यों निकाल दिया - इसका कारण तो आपने पढ़ लिया, पर मंत्री कर्मचन्द बादशाह अकबर के पास आकर क्या करता था और बादशाह अकबर उस पर क्यों प्रसन्न रहता था जिसके लिये एक किताब में लिखा है कि:
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१ कहते हैं कि कर्मचंद ने मरते समय अपने पुत्रों को समझा दिया था कि वे राजा रायसिंहजी के प्रलोभन में पड़ कर कभी बीकानेर न जायें । राजाजी ने जो शोक प्रकाशित किया है वह केवल इस कारण से है कि वे मुझ से बदला न ले सके और पहले ही मेरा अन्त समय निकट आ पहुँचा है ।
२ इस नाराजी का कारण हम ऊपर एक मछली के लेख में लिख आये हैं कि राजा रायसिंह खरतरयति मानसिंह से जहाँगीर के राज की अवधि पूछता है इत्यादि परन्तु इस षडयंत्र का भेद जहाँगीर को मिल जाने से वह सख्त नाराज था ।