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( २६ ) रूपना के समाचार उन शासन स्तंभ धुरंधर प्राचार्यों के कानों तक पहुँचे तो उनको बड़ा ही दुःख हुआ । कारण, जिनवल्लभ की वीर गर्भापहार रूपी उत्सूत्र प्ररूपना तो अभी शासन को कांटा खीला की भांति खटक ही रही थी, फिर जिनदत्त० ने इस प्रकार उत्सूत्र प्ररूपना क्यों की है ? जैनागमों में चेलना, सिवा प्रभावती मृगावती, जयन्ति, सुलसा और द्रौपदी वगैरह अनेक महिलाओं ने परमेश्वर की द्रव्य भाव से पूजा की, जिसके उल्लेख श्रागमों में स्पष्ट मिलते हैं। अतः इसके लिए सभा करके जिनदत्तसूरि को समझाना चाहिये । यदि वह समझ जाय तो ठीक, नहीं तो जिनदत्त का संघ से बहिष्कार कर देना चाहिये । जैसे कि जिनवल्लभ का श्रीसंघ ने बहिष्कार कर दिया था, इत्यादि । इस बात की नगर में खूब गरमागरम चर्चा चल पड़ी।
जिनदत्तसूरि एक हटकदाग्रही व्यक्ति था । उसने आन्दोलन की बात सुन कर सोग कि एक तरफ तो राजा कुमारपालादि सकल श्राद्ध संघ तथा दूसरी ओर हेमचन्द्रसूरि आदि श्रमण संघ है । यहां मेरी कुछ भी चलने की नहीं है, अतः रात्रि में एक शीघ्रगामी ऊंट मंगवा कर उस पर सवार हो रात्रि में ही पलायन
र गया जैसे पुलिस के भय से चोर पलायन कर जाते हैं । जिनदत्त पाटण से ऊंट पर सवारी कर थोड़े ही समय में जावलीपुर पहुँच गया। तब जाकर उसने थोड़ा निर्भयता का श्वास लिया । जैसे चोर पल्ली में जाकर निर्भयता का श्वास लेता है।
सुबह श्रीसंघ ने खबर मंगाई तो मालूम हुआ कि जिनदत्त तो रात्रि में ही पलायन कर गया है । अतः श्रीसंघ ने यह निश्चय किया कि जहां जिनदत्त० गया हो वहां के श्रीसंघ को लिख दिया