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( ३७ ). तेमा ना पैसा माथी प्राचार्यादिकना अग्नि-संस्कार स्थाने स्तूपादिक कराववो तथा त्यां यात्रा अने उजणीअो करवी । , ७-आचार्यों नी मूर्तियो कराववी । .. ८-चक्र श्वरीनी स्तुति मां जिनदत्तसूरिए का छे के विधिमार्गना शत्रुओ ना गला कापी नाखनार चक्र श्वरी मोक्षार्थी जन ना विघ्न निवारो।
___शतपदी गुर्जर अनुवाद पृष्ठ १४६ ऐसी पच्चीस बातें जिनदतसूरि के लिये लिखी हैं जिसके अन्दर से केवल नमूने के तौर पर मैंने८ बातें ऊपर लिखी हैं, जिससे पाठक समझ सकते हैं कि जिनदत्तसूरि की अन्य गच्छीयों के साथ कैसी भावना थी कि उन सब के गले काटवा डालने की चक्रेश्वरी देवी से प्रार्थना करते हैं। इसका कारण यह हो सकता है कि जिनवल्लभ ने महावीर के गर्भापहार नामक छट्ठा कल्याणक की प्ररूपना कर अपना 'विविमार्ग' नामक मत निकाला तथा उनके पट्टधर जिनदत्तसूरि ने स्त्रियों को जिन-पूजा निषेध कर उत्सूत्र प्ररूपना की । यही कारण था कि श्री संघ उनको संघ बाहर कर दिया जिससे रुष्टमान होकर उनका कुछ वश नही पहुँचा तब जाकर चक्रेश्वरीदेवी से प्रार्थना कर अपने तप्त हृदय को शीतल किया । ऐसा व्यक्ति अपने आप पुजाने के लिये मकान में पेटी रखवा कर पैसा डलवावे और उन पैसों से दादावाड़ी एवं पादु
संवत् १२६३ में धर्मघोषसूरि ने प्राकृत भाषा का शतपदी नामक ग्रंथ रचा था जिसको सं० १२९४ में आचार्य महेन्द्रसिंहसरि ने उस प्राकृत शतपदी से संस्कृत शतपदो लिखो, जिसको वि० सं० १९५१ में श्रावक रवजोदेवराज ने गुजराती अनुवाद छपाया।