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( १६ ) पाँच कल्याणक स्पष्टतया लिखे हैं, अतः यहाँ पर हरिभद्रसूरिकृत मूल पंचासक तथा उसकी टीका ज्यों की त्यों लिख देता हूँ। तेसुअ दिणेसु धण्णा, देविंदाई करिति भत्तिणया । जिणजत्तादि विहाणा, कल्लाणं अपणो चेव ॥३॥ इअ ते दिणा पसत्था, ता सेसेहिपि तेसु कायव्वा । जिण जत्तादि सहरि संते अ, इम बद्धीमाणस्स ॥ ४ ॥ आसाढ़ सुद्धि छट्टी, चित्ते तह सुद्धि तेरसी चैव । मग्गसिर कन्हा दसमी, वसाहि सुद्ध दसमी य ॥ ५॥ कतिय कन्हा चरिमा, गब्भाइ दिणा जहक्कम एते । हत्थुत्तरजोएणं चउरो, तह साइणा चरमो ॥ ६॥ अहिगय तित्थविहिया, भगवन्ति निदंसिआ इमे तस्स । से साणवि एवं चिअ, निअ निअ तित्थेसुविण्णो आ ॥७॥
"आ हरिभद्र परिकृत यात्रा पंचासक ग्रन्थ प० ५० पृ० ३२८ उपरोक्त लेख में आचार्य हरिभद्रसूरि ने भगवान महावीर के कल्याणकों के लिए अलग २ तिथियाँ लिखी हैं जैसे
१-आसाढ़ शुक्ल ६ को महावीर का चवन कल्याणक २-चैत्र शुक्ल १३ को , जन्म , ३-मार्गशीर्ष कृष्ण १० को , दीक्षा कल्याणक ४-वैशाख शुक्ल १० को ,, केवल ज्ञान , ५-कार्तिक कृष्ण १४ को ,, निर्वाण ,
अब आगे चल कर आप देखिये इसी पंचासक ग्रंथ पर अभयदेवसूरि ने टीका रची है जिसमें आप क्या लिखते हैं। ...