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में लड़ाने का ही काम किया था। शायद इसका कारण यह हो कि देवभद्र और शेखर के आपस में कलह हो गया था और देवभद्र ने शेखर का गला घोट * कर निकाल दिया था । अतः देवभद्र ने द्वष के कारण संभोगी साधु शेखर को छोड़ कर विसंभोगी सोमचन्द्र को सूरि बनाया होगा। ____ मुनि शेखर भी देवभद्र एवं सोमचन्द्र से कम नहीं था । उसने भी अपनी अलग पार्टी बनानी शुरु कर दी और उसमें शेखर को सफलता भी मिलती गई । कारण, जिनदत्त की खरतर प्रकृति के कारण साधु उनसे राजी नहीं पर नाराज ही रहते थे । वस मुनि शेखर को सफलता मिलने का यही विशेष कारण था । समय पाकर मुनि शेखर भी सूरि बन गया और जिनवल्लभ के 'विधि मार्ग के दो टुकड़े हो गये। एक का आचार्य जिनदत तव दूसरे का आचार्य जिन शेखर । ... प्रश्न-जिनदत्त सूरि तो सं० ११६९ में आचार्य हुये तब जिनशेखरसूरि प्राचार्य कब हुये ?
उतर-खरतरगच्छ की पट्टावली पृष्ट ११ पर लिखा है किः- संवत् १२०५ रुद्रपल्ल्यां छद्मना सूरिपदं गृहीतं जिनशेखरेण ततो रूद्दलिया गण जातः" ।
अर्थात् १२०५ में जिनशेखर आचार्य हुये।
प्रश्न-जब सम्वत् १२०५ में जिनशेखर आचार्य हुआ तब बाबू पूर्णचन्द्रजी सम्पादित शिलालेख खण्ड तीसरा पृष्ठ १२ पर एक
* "अपर दिने जिनशेखरेण साधु विषये किंचित्कल हादिकम युक्तं कृतं, ततो देवभदाचार्येण गले गृहीत्वा निष्काशित इत्यादि।" ..
. 'प्रवचन परीक्षा पृष्ट" २५१