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। ण खलु एवं भूयं, ण भव्वं, ण भविस्सं, जण्णं अरहंता वा, चक्कवट्टीवा, बलदेवा वा, वासुदेवावा,अंतकुलेसु वा,पंतकु लेसुवा, तुच्छकुलेसुवा, दरिदकुलेसुवा, किविणकुलेसु वा, भिक्खागकुलेसुवा,माहणकुलेसुवा, आयाइंसुवा,आयाईति वा, आयाइस्संति वा ॥१७॥ एवं खलु अरिहंता वा, चकवट्टीवा, बलदेवा वा, वासुदेवा वा, उग्गकुलेसु वा, भोगकुलेसुवा, राइण्णकुलेसुवा, इक्खागकुलेसुवा, खत्तिअकुलेसुवा, हरिवंस कुलेसुवा, अण्णयरेसुवा, तहप्पगारेसु विसुद्धजाइकुलवंसेसु आयाइंसुवा, आयाइति वा, आयाइस्संति वा ॥ १८ ॥ अत्थि पुण एसेवि भावे लोगच्छेरयभूए अणंताहिं उस्सप्पिणि ओसप्पिणीहिं वइकंताहिं समुप्पज्जई" ___ अर्थ-निश्चय कर के ऐसा न हुआ न होता और न होगा जो कि तीर्थकर चक्रवर्ती वासुदेव बलदेव अंतकुल, प्रांतकुल, तुच्छ कुल, दरिद्रकुल, कृपणकुल, भिक्षुकुल ब्राह्मणकुल में आया श्रावे और आवेगा परन्तु निश्चय कर के अरिहन्त चक्रवर्ती बलदेव और वासदेव उग्रकुल भोगकुल राजनकुल, इक्ष्वाकुकुल क्षत्रिय कुल हरिवस कुल इनके अलावा और भी विशुद्ध जाति कुल में
आया आवे और आगे परन्तु यह तो एक आश्चर्यभूत अनन्तकाल से ऐसी बात होती है।
जबकि ब्राह्मणादिक कुल में तीर्थंकरों का आना अनन्तकाल से आश्चर्य बतलाया है तो उसको कल्याणक कैसे माना जाय ।