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की नींव डाली हैं। पर बल्लभ उस पाठ के आशय को ही नहीं समझा है। देखिये -
"पंच हत्थुत्तरे होत्था साइणा परिनिव्वुड़े" अर्थात पंच हत्थुतरे और छट्टा स्वाति नक्षत्र को देख कर छठ्ठा गर्भापहार कल्या
क की प्ररूपना कर दी परन्तु श्रीश्राचारांगसूत्र तथा कल्पचूर्णि वगैरह शास्त्रों में नक्षत्र की गिनती करते हुए छ वस्तु बतलाई है न कि छ: कल्याणक । यदि जिनवल्लभ जम्बुद्वीप प्रज्ञाप्तिसूत्र को देख लेता तो वहां ही समाधान हो जाता, कारण प्रस्तुत सूत्र में भी भगवान ऋषभदेव के लिये भी छः नक्षत्र कहा है ।
"उसभेणं अरहा कोसलिए
पंच उत्तरासाढ़े अभीच छट्ठे होत्था" जैसे महावीर के पंच हत्थुत्तरा और छट्ठा स्वाति नक्षत्र वतलाया है वैसे ही ऋषभदेव के पंच उत्तराषाढा और छट्ठा अभीच नक्षत्र बतलाया है । यदि महावीर के छः नक्षत्र होने से छः कल्याणक माना जाय तो ऋषभदेव के छः नक्षत्र बतलाये हैं वहाँ भी छ: कल्याणक मानना चाहिये । यदि ऋषभदेव के राज्याभिषेक को कल्याणक नहीं माना जाय तो महावीर के भी गर्भापहार को कल्याणक नहीं मानना चाहिये ? पर यह तो सरासर अन्याय है कि ऋषभदेव के छः नक्षत्र कहने पर भी राज्याभिषेक को छोड़ कर पांच कल्याणक मानना और महावीर
के गर्भापहार जो नीच गौत्र के उदय से हुआ है जिसको कल्याएक मानना । लीजिये स्वयं शास्त्रकार इस विषय के लिये क्या कहते हैं—