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( ११ ) की उत्सूत्र प्ररूपना कर तीर्थकर गणधर और पूर्वाचार्यों की आज्ञा का भंग कर वन पाप की पोट अपने सिर पर उठाई है, इतना ही क्यों पर कई भद्रिक जीवों को भी अपने अनुयायी बना करउनको भी संसार में डुबा दिया है।
अभयदेवसूरयः स्वगंगताः प्रसन्नचन्द्राचार्येणापि प्रस्तावा ऽभावात् गुरोरादेशो न कृतः केवलं श्रीदेवभद्राचार्याणामग्रे भणित सुगुरूपदेशतः प्रस्तावेयुष्माभिः सफली आर्यः इतश्च पत्तनादात्मानातृतीयः सिद्धान्तविधिना जिनवल्लभगणिश्चित्र-- कूटे विहृतः तत्र चामुंडाप्रतिबोधता साधारणश्राद्धस्य परिग्रहप्रमाणप्रदतं श्रीमहावीरस्य गर्भापहाराभिधं षष्टंकल्याणकं प्रकटितं क्रमेण साधारण श्रावकेण श्रीपार्श्वनाथ श्रीमहावीर-. देवगृहद्वयं कारितं
गणधरसाद्ध शतक लघुवृति ..
इस लेख में स्पष्ट लिखा है कि जिनवल्लभ ने चित्तौर में जाकर चामुडादेवी को बोध दिया साधारण श्रावक को परिग्रह का परिमाण कराया और महावीर का गर्भापहार नामक छठा कल्याणक प्रगट किया इत्यादि । इससे निश्चय हो जाता है कि जिनवल्लभ ने यह जैनागमों के एवं पूर्वाचार्यों की आज्ञा को भंग कर गर्भापहार नाम का छठा कल्याणक प्रगट किया जिसको उत्सूत्र प्ररूपना कही जा सकती है। यदि ऐसा न होता तो प्रगट. शब्द की जरूरत ही क्या थी।