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पहार कल्याणकं' इसमें श्रद्य शब्द यह अर्थ बतला रहा है कि गर्भापहारको कल्याणक उसी दिन वल्लभ ने माना है तब ही तो श्रावकों की सम्मति लेनी पड़ी वरना सम्मति की क्या जरूरत थी ।
४ - वहां विधिचैत्य न होने पर अविधिचैत्य ( चैत्यवासियों के चैत्य में) देववन्दन करना यह भी बतला रहा है कि यह प्रवृति वल्लभ ने नयी चलाई थी ।
५ - मंदिर में रही आर्य का पूछती है कि आज क्या विशेष है ? जब यह प्रवृति नई नहीं होती तो आर्यका को इतना पूछने की जरूरत ही क्या थी ? जब आर्यका को मालूम हुआ कि गर्भापहार नामक छट्टा कल्याणक का देववंदन करेगा तो उसने सोचा की इसके पूर्व गर्भापहार को किसी ने भी कल्याणक नहीं माना, अतः जिनवल्लभ ने यह नयी प्ररूपना क्यों की है ।
६ - 'पूर्व केनापि न कृतमेतदेतेऽधुना करिष्यतीति न युक्तं ' इससे भी निश्चय होता है कि पूर्व किसी ने भी गर्भा - पहार को कल्याणक नहीं माना था इसलिये ही आर्यका ने कहा था कि अयुक्त
७ - ' पश्चात् संयति देवगृहद्वारे पतित्वास्थिता' यह शब्द बतला रहा है कि वल्लभ की यह प्रवृति उत्सूत्र रूप नयी थी कि सब संयति इसका विरोध करने को मंदिर के द्वार पर कर उपस्थित हो गये ।
इन उपरोक्त शब्दों के आशय से पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि वल्लभ ने महावीर के गर्भापहार नामक छट्टा कल्याणक