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हो गये और जिनवल्लभ की उत्सूत्र प्ररूपना का सख्त विरोध करने लगे इत्यादि । फिर भी प्रभु के दर्शन करने पर वे शान्त होकर अपने २ स्थान पर चले गये। बाद श्रावकों ने गुरू से प्रार्थना की कि अपना मकान बहुत बड़ा है उस पर एक चौबीसी पट्ट रख कर वहाँ ही सब क्रिया किया करें इत्यादि।
इस लेख से साबित होता है कि जिनवल्लभ ने महावीर के गर्भापहार रूप छट्ठा कल्याणक की चित्तौड़ में नयी प्ररूपना की थी जो वल्लभ के निन्नलिखित वचन इसको साबित कर रहे हैं । जैसे किः
१–'समागतं' यह शब्द बतला रहा है कि गर्भापहार का कल्याणक केवल एक वल्लभ को ही मिला । वह भी उसी दिन क्योंकि जिनवल्लभ की उस समय करीबन ६५ वर्ष की उम्र होगी जब उसने बचपन में ही दीक्षा ली तो ५५-६० वर्ष की दीक्षा पाली और कई बार कल्पसूत्र भी बांचा होगा उसमें तो उनको गर्भापहार कल्याणक नहीं मिला; केवल उस दिन ही 'समागत' हुआ अर्थात मिला अतः यह उत्सूत्र प्ररुपना उसी दिन की गई थी।
२–'प्रकटाक्षरैरेव' यह शब्द बतला रहा है कि भगवान सौधर्मस्वामि से अभयदेवसूरि तक सैंकड़ों आचार्य हुये उन्होंने "पंचहत्थुत्तरे होत्था साइणपरिनिव्वुडे" यह अक्षर नहीं देखे हों
और ५५-६० वर्ष तक वल्लभ ने भी नहीं देखे, परन्तु आश्विन कृष्णत्रयोदशी के दिन वल्लभ को ही वे प्रकटाक्षर दीख पड़े ? . ३-भोः श्रावका ! अद्य महावीरस्य षष्टं गर्भा