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५. कई खरतर कहते हैं कि केवल जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि ही पाटण पधारे थे । +
६ कई खरतर यह भी कहते हैं कि वृद्ध मानसूरि जिनेश्वरसूरि के साथ पाटण गये वहाँ वर्द्धमानसूरि का स्वर्गवास हो गया था, बाद जिनेश्वरसूरि का शास्त्रार्थ हुआ था । X २- जिनेश्वरसूरि का शास्त्रार्थ किसकी सभा में
१ कई खरतर कहते हैं कि राजा दुर्लभ की सभा में शास्त्रार्थ हुआ। +
२ कई खरतर - राजा दुर्लभ (भीम) की सभा में शास्त्रार्थ हुआ कहते हैं । +
+ व्याजहरथदेवास्मद् गृहे जैनमुनीउभौ
"प्र० च० अभयदेव प्रबन्ध" + श्रीजिनेश्वरसूरिः स च बुद्धिसागरेण सार्धं मरुदेशाद विहारं कृत्वा अनुक्रमेण गुर्जर देशे अणहलपुर पत्तने समागतः
"खरतर पट्टावलो पृष्ट ११”
हल्लपाटणि आवी वर्द्धमानसूरि स्वर्गे हुआ
x श्रीगुर्ज्जरह सेना शिष्य श्री जिनेश्वरसूरि पाटणिराज श्रीदुर्लभनी सभाई इत्यादि " सिद्धान्त मग्नसागर पृष्ट ९४ "
+ दुर्लभ राज सभायां - "खरतर पट्टावली पृष्ट १० "
+ यति रामलालजी ने महाजनवंशमुक्तावली पृष्ट १६७ पर लिखा है कि राजा दुर्लभ ( भीम ) की सभा में x
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+ वीरपुत्र आनन्दसागरजी ने कल्पसूत्र के हिन्दी अनुवाद में राजा दुर्लभ (भीम) ही लिखा है