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( १०) में वसति की शुरुआत हुई तब भी वे चैत्य में ही ठहरते थे * तथा श्रावकों के घरों में घरदेरासर थे और वे सब उन घरों में ही रहते थे । प्रातः चैत्यों में साधु ठहरें तो कोई हर्जा नहीं था तथा सम्राट सम्प्रति ने मेदिनी मंदिरों से मंडित की थी। उन्होंने भी चैत्य के समीप एवं चैत्य के अन्दर ऐसे स्थान बना दिये कि जहाँ साधु ठहर सकें और उन स्थानों का नाम उपाश्रय रक्खा था वह भी यही सूचित करते हैं कि वे स्थान चैत्य के समीप थे।
* उम समय सब धर्म वाले प्रायः धर्मस्थानों (चैत्य ) में ठहर कर धर्मोपदेश दिया करते थे जैसे बौध भिक्षु बौधचैत्यों में ठहरकर धर्मोपदेश देते थे बाद जब से दिगम्बर मत चला तो उसके साधु भी चैत्यों में धर्मोपदेश दिया करते थे। इतना हो क्यों पर दिगम्बरों के चैत्यों में तो आज मो व्याख्यान एवं स्वाध्याय होता है इसी प्रकार श्वेताम्बर साधु भो अपने चैत्यों में व्याख्यान देते हों तो असम्भव नहीं है श्वेताम्बर समाज में आज भी किसी को छोटो बड़ी दीक्षा देनी होतो चैत्य में होः दी जाती है । उपधान की माला तथा श्री संघ माला की क्रिया चेत्य में. ही कराई जाती हैं। ___ हाँ, जब चैत्यवास में विकृति हो गई, गृहस्यों के करने योग्य कार्य अर्थात् चैत्य की व्यवस्था वे चैत्यवासी साधु स्वयं करने लग गये इस हालत में संघ का विरोध होना स्वाभाविक ही था। दैत्यवासियों को चैत्य से हटाने के बाद भविष्य का विचार कर श्रीसंघ ने यह नियम बना लिया कि अब साधुओं को चैत्य में नहीं ठहरना चाहिये। अतः श्रासंघ की आज्ञा का पालन करते हुये आज कोई भी साधु मन्दिर में नहीं ठहरते हैं । यदि कोई अज्ञान साधु चैत्य में ठहर मी जाय तो श्री। संघ अपना कर्तव्य समझ कर उसको फौरन चैस्य से निकाल दें।