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खरतरमतोत्पत्ति में खरतर लोग विशेष कारण चैत्यवासियों का ही बतलाते हैं। अतः पहिले मैं थोड़ासा चैत्यवासियों का परिचय करवा देता हूँ।
चैत्यवास-चैत्य यानि मन्दिर और उसमें ठहरना ( वास ) अर्थात् मंदिर में ठहरना उसको चैत्यवास कहा जाता है । चैत्य की व्यवस्था दो प्रकार से समझी जाती है एक तो चैत्यके सब कम्पाउन्ड को चैत्य कहते हैं और दूसरे चैत्यमें मूलगम्भारा हैं कि जिसमें भगवान की मूर्ति स्थापित की जाय उसको भी चैत्य कहा जाता है।
चैत्य के कम्पाउन्ड में ऐसे भी मकान होते हैं कि जिसमें साधु और गृहस्थ ठहर सकते हैं जैसे भोयणी, पानसर, जघड़िया, जैतारन, कापरड़ा और फलौदी के मन्दिरों में आज भी ऐसे मकान है कि जहाँ साधु ठहर सकते हैं। __चैत्य के मूलगम्भारा के अलावा रंगमण्डपादि स्थान हैं उसमें भी साधु धर्मोपदेश दे सकते हैं अतः एवं मकान की विशालवा हो तो साधुठहर भी सकते हैं कारण कि जब तीर्थङ्करदेव की विद्यमानता के समय भी साधु उनके समीप रहते थे और आहार पानी भी वहीं करते थे । अतः चैत्य में रहने से नुकसान नहीं पर कई प्रकार के फायदे ही थे क्योंकि साधु के चैत्यमें ठहरने से श्रावकों को देवगुरु की भक्ति उपासना या व्याख्यान श्रवणादि में अच्छा सुभीता रहता था । जब बन उपवन एवं जंगलों में चैत्यथे उस समय भी साधु चैत्यों में ही ठहरते थे बाद साधुओं