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( ३९ ) तेसिं पयपउमसेवारसिओ भमरुव्व सव्वभमरहिओ। ससमयपरसमयपयत्थसत्थवित्थारणसमत्थो ॥६४॥ अणहिल्लवाडए नाडइव्व दंसियसुपत्त संदोहे । पउरपए बहुकविदूसगे य सन्नायगाणुगए ॥६५।। सड्डियदुल्लहराए सरसइअंकोव सोहिए सुइए । मझो-रायसहं पविसिऊण लोयागमाणुमयं ॥६६॥ नामा यरिएहिं समं करियं विचारं वियाररहिएहिं। वसइहिं निवासो साहूण ठविओ ठाविओ अप्पा ॥६७॥ ___ इस लेख में वसतिवास का जिक्र है पर शास्त्रार्थ एवं खरतर की गन्ध तक भी नहीं है
१-खरतरों ने सुविहित शब्द का अर्थ फुटनोट में खरतर किया है यह एक भद्रिक जनता को धोखा देने को एक जाल रचा है। क्योंकि सुविहित शब्द मात्र से ही बरतर कहा जाय तो प्रत्येक गाछ में सुविहित भाचार्य हुए हैं तथा गगधर सौधर्म और आपकी सन्तान भी सुविहित ही थे उनको भी खरतर कहना चाहिये, फिर एक जिनेश्वर सूरि को ही खरतर क्यों कहा जाय ? २ दूसरे खरतरों ने 'वसतिवास' शब्द के साथ भी खरतर शब्द को जोड़ दिया है यह भी धोखे की ही बात है। यदि वतिवास को ही खरतर कहा जाय तो भगवान भद्रबाहु को भो खरतर कहना चाहिये । कारण सबसे पहिले वसतिवास का उल्लेख उन्होंने ही किया था। खरतरों ! अब जमाना ऐसा नहीं है, कि तुम इस प्रकार जनता को भ्रम में डाल सको। क्या सैंकडों वर्षों में भी तुमको एक दो लेखक ऐसे नहीं मिले कि एक राजा की ओर से मिले हुए खरतर विरुद को स्पष्ट शब्दों में लिख सके ? कि आपको इस प्रकार माया कपटाई एवं प्रपंच नाव रचना पड़ा है। (लेखक)