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( ३४ ) तत्पद पद्मभ्रमरश्चक्र पद्मप्रभश्चरित मेतद् । विक्रमतोऽतिक्रान्ते वेदग्रहरवि १२९४ मिति समये ॥६॥ इति श्री पनप्रभसूरि विरचित श्री मुनि सुव्रत चरित्र प्रशस्तौ
प्रबचन परीक्षा पृष्ठ २९२ . इस लेख में भी न तो जिनेश्वरसूरि के शास्त्रार्थ का जिक्र है और न खरतर विरुद की गन्ध भी है । आगे चल कर अभयदेवसूरि की सन्तान में एक धर्मघोषसूरि नाम के आचार्य हुए, उन्होंने आबू के मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई जिसका शिलालेख क्या उदघोषना करता है देखिये ।
स्वस्तिश्रीनृपविक्रम संवत् १२९३ वर्षे वैशाख शुक्ल १५ शनावोह श्रीअर्बुदाचलमहातीर्थे अणहिल्लपुरवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय त० श्रीचंडप्रसाद महं० सोमानये त० आसराज सुत महं श्रीमल्लदेव महंश्रीवस्तुपाल योरनुज महं-श्रीतेजपालेन कारित श्रीलूणसीहवसहिकायां श्रीनेमिनाथ चैत्ये इत्यादि यावत् श्रे० घेलण समुद्धर प्रमुख कुटुम्ब समुदायेन श्रीशान्तिनाथ बिम्बंकारितं प्रतिष्ठित च नवाङ्गी वृत्तिकारक श्रीअभयदेवसूरिसंतानीयैः श्रीधर्मघोषसूरिभि"
प्रवचन परीक्षा पृष्ठ २९२ इस शिलालेख से इतना तो स्पष्ट सिद्ध हो सकता है कि अभयदेवसूरी तो क्या पर आपकी परम्परा में कोई भी खरतर पैदा नहीं हुआ था, इतना ही क्यों पर अभयदेवसूरि के साथ खरतरों का कुछ सम्बन्ध भी नहीं था । कारण श्रीअभयदेवसूरि तो