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( ७ ) ५. कई कहते हैं कि राजा ने विरुदतो नहीं दिया पर केवल इतना ही कहा कि ये खरा-वस इसको ही खरतर विरुद समझ लिया गया है। ७ -क्या जिनेश्वरसूरि के पूर्व भी खरतर थे ? १. कई खरतर कहते हैं कि जिनेश्वरसूरि खरतर थे। २. , , उद्योतनसूरि भी खरतर थे।
, वर्द्धमानसूरि भी खरतर थे। ४... , , सौधर्मस्वामि भी खरतर थे।
, गौतम स्वामि भी खरतर थे । + उपरोक्त खरतर मतानुयायियों के पृथक् २ लेखों एवं मान्यतात्रों से इतना तो सहज ही में जाना जा सकता है कि स्वरतरों ने केवल खरतर विरुद की एक कपोल कल्पित कल्पना करके विचारे भद्रिक जीवों को बड़ा भारी धोखा दिया है। वास्तब में खरतरों को अभी तक यह पता नहीं है कि खरतरशब्द की उत्पत्ति
+ श्रीजिनेश्वरसूरि पारणिराजश्रोदुर्लभनी सभाई कुर्च पुग्नगच्छीय चेत्यवासी साथी कांस्यपात्रनो चर्चा कीधी त्यो श्रीदशवेकालिकनी चर्चा गाथा कही ने चेत्यवासी ने जोत्या तिवारई राज श्रीदुर्लभ कहा “ऐ भाचार्य शास्त्रानुसारे खरूं वोल्या" ते थको वि० सं० १०८० वर्षे श्रा विनेश्वरसूरि खरतर विरुन लीधो ।
"सिद्धान्त मग्नसागर पष्ठ ९४" +नं० १, २, ३, ४, ५ के प्रमाण इसी पुस्तक में मन्पत्र दिये नामंगे । अतः पाठक यहां से पढ़ लें।