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( २५ ) बढ़ता पूर्वक पालन करने, को कटिबद्ध हूँ पर आपसे इतनी प्रार्थना करता हूँ कि मेरे नगर में कोई भी गुणी जन आ निकले तो उनको ठहरने के लिये स्थान तो मिलना चाहिये । अतः श्राप इस मेरी प्रार्थना को स्वीकर करें ? चैत्यवासियों ने राजा की प्रार्थना स्वीकार करली।
जब चैत्यवासियों ने राजा को प्रार्थना स्वीकार करली तब उस अवसर को पाकर पुरोहित ने राजा से प्रार्थना की कि हे राजन् ! इन साधुओं के मकान के लिये कुछ भूमि प्रदान करावें कि इनके लिये एक उपाश्रय बना दिया जाय ? उस समय एक शैवाचार्य राजसभा में आया हुआ था। उसने भी पुरोहित की प्रार्थना को मदद दी । अतः राजा ने भूमिदान दिया और पुरोहित ने उपाश्रय बनाया जिसमें जिनेश्वरसूरि ने चातुर्मास किया । बाद चतुर्मास के जिनेश्वरसूरि विहार कर धारानगरी की ओर पधार गये। .
इस उल्लेख से पाठक स्वयं जान सकते हैं कि जिनेश्वरसूरि पाटण जरूर पधारे थे पर न तो वे राजसभा में गये न चैत्यवासियों के साथ शास्त्रार्थ हुआ और न राजा ने खरतर विरुद ही दिया । इस लेख से स्पष्ट पाया जाता है कि राजसभा में केवल सोमेश्वर पुरोहित ही गया था और उसने राजा से भूमि प्राप्त कर जिनेश्वरसूरि के लिये उपाश्रय बनाश जिसमें जिनेश्वर
१. पाटण बसाने में आचार्य शीलगुणसूरि का हो उपकार था, और देवचन्द्रसूरि शीलगुणसूरि के शिष्य थे और वनराज के कार्य में इनकी पूरी मदद थी अतः देवचन्द्रसूरि का नाम लिया हो।