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और आपस में वार्तालाप होने से पुरोहित ने उनका सत्कार कर ठहरने के लिये अपना मकान दिया क्योंकि जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि जाति के ब्राह्मण थे । अतः ब्राह्मण ब्राह्मण का सत्कार करे यह स्वाभाविक बात है ।
इस बात का पता जब चैत्यवासियों का लगा तो उन्होंने अपने आदमियों को पुरोहित के मकान पर भेजकर साधुत्रों को कहलाया कि इस नगर में चैत्यवासियों की आज्ञा के बिना कोई भी श्वेताम्बर साधु ठहर नहीं सकते हैं अतः तुम जल्दी से नगर से चले जाओ इत्यादि । आदमियों ने जाकर सब हाल जिनेश्वरादि को सुना दिया । इस पर पुरोहित सोमेश्वर ने कहा कि मैं राजा के पास जाकर निर्णय कर लूंगा आप अपने मालिकों को कह देना । उन श्रादमियों ने जाकर पुरोहित का संदेश चैत्यवासियों को सुना दिया । इस पर वे सब लोग शामिल होकर राजसभा में गये। इधर पुरोहित ने भी राजसभा में जाकर कहा कि मेरे मकान पर दो श्वेताम्बर साधु श्राये हैं मैंने उनको गुणी समझ कर ठहरने के लिये स्थान दिया है । यदि इसमें मेरा कुछ भी अपराध हुआ हो तो आप अपनी इच्छा के अनुसार दंड दें |
चैवासियों ने राजावनराजचावड़ा और आचार्य देवचन्द्रसूरि का इतिहास सुना कर कहा कि आपके पूर्वजों से यह मर्यादा चली आई है कि पाटण में चैत्यवासियों के अलांवा श्वेताम्बर साधु ठहर नहीं सकेगा । श्रतः उस मर्यादा का आपको भी पालन करना चाहिये इत्यादि ।
इस पर राजा ने कहा कि मैं अपने पूर्वजों की मर्यादा का