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( १६ ) क्रियाउद्धारकों का प्रभाविक पुरुषों में नाम निशान तक भी नहीं हैं क्योंकि इन लोगों ने शासन की प्रभावना नहीं की पर शासन में फूट-कुसम्प डालकर एवं नये २ मत निकालकर शासन का संगठनबल तोड़ २ कर शासन को अधिक से अधिक नुकसान पहुँचाया था। अतः उन्हों की गिनती प्रभावकों में नहीं पर उत्सत्रप्ररूपकों में ही की गई थी। जरा चैत्यवासियों के साथ उनकी तुलना करके देखियेः
१- चैत्यवासियों के शासन में जैनसमाज का संगठन था वह बाद में नहीं रहा क्योंकि श्रीसंघ का संगठन तोड़ने का तो इन नूतन मतधारियों का खास ध्येय ही था।
२- चैत्यवासियों के समय समाज की देवगुरुधर्म पर दृढ़ श्रद्धा थी वह बाद में नहीं रही थी क्योंकि नूतनमतधारियों ने भद्रिका के हृदय में भेदभाव डाल दिया था ।
३-चैत्यवासियों के समय समाज तन धन इज्जत मान प्रतिष्ठा से समृद्धिशाली था वैसा बाद में नहीं रहा क्योंकि मत-- धारियों ने समाज में फूट डाल कर उनका पुन्य हटा दिया था । ___५-चैत्यवासियों के शासन में बड़े २ राजा महाराजा जैनधर्मोपासक एवं जैनधर्म के अनुरागी थे वैसे बाद में नहीं रहे क्योंकि वे मतधारी लोग तो केवल घर में फूट डालने में ही अपना गौरव समझते थे।
५-चैत्यवासियों ने अपनी सत्ता के समय जैनधर्म की उन्नति करके जैनधर्म को देदीप्यमान रक्खा था वैसे बाद में किसी ने नहीं रक्खा । इतना ही क्यों पर बाद में तो उन लोगों