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___३-खरतर पट्टावली बताती है कि वर्द्धमानसूरि ने श्राबू के मन्दिरों की प्रतिष्ठा ( वि० सं० १०८८) करवाने के बाद जिनेश्वर और बुद्धिसागर दो ब्राह्मणो को दीक्षा दी थी बाद वर्द्धमानसूरि का देहान्त हुआ और जिनेश्वरसूरि पाटण गये । * ___४-कई कहते हैं कि जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि अपने शिष्य परिवार के साथ पाटण गये थे । *
विमलेन हठात् चिन्तितं सर्वोऽध्यय गिरिमया स्वर्ण मुद्रया गृहोप्यते । द्विजैर चिन्ति तीर्थ मस्मदीयं सर्व यास्यतीति विचिन्त्य स्तो कैव धरादत्ता । तत्र महान् श्रीआदिनाथ प्रासादः कारितः + + + अथैदा श्रीसूरयः सरस्वतीपत्तने जग्मुः । शानायां स्थिताः स्वशिष्यान् तर्क पाठयन्ति । सदा जिनेश्वर बुद्धिमागरी विप्रौ श्रत्वा तर्कशालायां समेतौ + + + प्रतिबुद्धौ द्वाभ्यामपि दीक्षा गृहीता । पठितानि सम्यग् शास्त्राणि | गुरुभिः पट्टे स्थापितः जातः श्री जिनेश्वरसूरिः
"खरतर पावली पृष्ट ४३" यह खरतर पहावली बताती है कि वर्द्धमानसूरि ने भाबू के मन्दिरों की प्रतिष्टा करवाने के बाद सरस्वती पाटण जाकर जिनेश्वर और बुद्धिसागर को दीक्षा दी । जबकि भाबू के मंदिरों की प्रतिष्ठा का समय वि०सं० १०८८ का बताया जाता है । अतः जिनेश्वरसूरि की दीक्षा सं० १००८ के बाद हई होगी और इसके बाद जिनेश्वरसूरि पाटण गये होंगे? इसपट्टा व्लीसे यह सिद्ध होता है कि या तो वर्द्धमानसूरि द्वारा आबू के मंदिरकी प्रतिष्ठा १०८८ में करवाना गलत है या जिनेश्वर का पाटण जाना गलत है अथवा पटावली कल्पित है।
* विहरन्तौ शनैः श्रीमत्पत्तनं प्रापतुर्मुदा। सद्गीतार्थ परिवारौ तन्त्र भ्रमंती गृहे गृहे ॥
"प्र० च० अभयदेवसरि प्रबन्ध"