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दो शब्द खरतर मतोत्पत्ति भाग पहिले नामक पुस्तक में खरतर ! मत की उत्पत्ति जो उत्सूत्र से हुई है जिसके कतिपय प्रमाण तथा जिनेश्वरसूरि और अभभदेवसूरि खर-तर नहीं पर। चन्द्रकुल की परम्परा में हुए, इस विषय में अभयदेवसूरि की टीकात्रों के प्रमाण उद्धत कर इस विषय को सष्ट कर समझा दिया था। बाद में जो प्रमाण मिले हैं उनको इस
दूसरे भाग में उद्धृत करके और भी साबित कर दिया है कि 1 जिनेश्वरसूरि पाटण पधारे थे, पर वे न गये राजसभा में,न का हुआ चैत्यवासियों के साथ शास्त्रार्थ और न दिया राजा
ने खरतर विरुद, इत्यादि । ____ पाठको ! श्राप इन दोनों भागों को आद्योपान्त पढ़ोगे तो आपको स्वयं बोध हो जायगा कि. खरतरों ने कल्पित चित्र बना कर उसके बीच मिथ्या लेख लिख कर अपने पूर्वजों से चली आई कलहवृत्ति का किस प्रकार पोषण किया है।
खैर ! अब आगे तीसरा भाग भी आपकी सेवा में शीघ्र ही उपस्थित कर दूंगा। कुछ समय के लिये आप धैर्य रखें।
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