Book Title: Khartar Gacchha Bruhad Gurvavali
Author(s): Jinpal Upadhyaya, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 18
________________ खरतर बृहद्गुळवलि-प्रास्ताविक वकव्य ३ संग्रह, वस्तुपालप्रशस्त्यादिकृतिसंग्रह, हमीरमहाकाव्य, विज्ञप्तिलेखसंग्रह - आदि कई ग्रन्थ प्रायः छप कर तैयार पडे हैं जो यथाशक्य शीघ्र ही प्रसिद्ध होने वाले हैं । इसी प्रकारके ऐतिहासिक ग्रन्थोंमें प्रस्तुत गुर्वावलिके समानविषय वाली विविध गच्छीय पट्टावलियों-गुर्वावलियोंके २-३ संग्रह भी प्रकट करनेका आयोजन किया गया है, जिनमेंसे यह एक प्रस्तुत गुर्वावलि, इस प्रकार विद्वानोंके सम्मुख उपस्थित हो रही है । बहद्दच्छ. उपकेश गच्छ, पूर्णिमा गच्छ, आंचलिक गच्छ, कटकमति गच्छ आदि अन्य कई गच्छोंका इतिहास बताने क पट्टावलियोंका एक ऐसा ही अन्य संग्रह प्रेसमें छप रहा है । तपागच्छसे संबद्ध पट्टावलियोंका एक विशाल संग्रह भी तैयार हुआ पडा है । खरतर गच्छीय पट्टावलियोंका एक छोटा सा संग्रह, सबसे पहले हमने, सन् १९२०-२१ में पूनामें रहते हुए जब 'जैनसाहित्य संशोधक' नामक त्रैमासिक पत्रका प्रकाशन शुरू किया तब, संकलित करनेका प्रयास किया था। बादमें हमारा कार्यकेन्द्र पूनासे हट कर, अहमदाबादका गुजरात - पुरातत्त्व - मन्दिर बना, तब वह संग्रह उपेक्षित दशामें पड़ा रहा। बादमें कलकत्तेके प्रसिद्ध जैन धनिक और विद्वान श्रावक स्व० बाबू पूरण चन्दजी नाहारके सौहार्दपूर्ण प्रयत्नके फलरूप सन् १९३२ में, कलकत्तसे वह संग्रह प्रकाशित हो पाया। हम उस समय शान्तिनिकेतनमें 'सिंघी जैन ज्ञानपीठ' के अधिष्ठाता हो कर पहुंचे थे और 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला' के प्रकाशनका कार्य बडे उत्साह पूर्वक प्रारंभ करना चाहते थे । उस समय बाबू पूरणचन्दजी नाहारको उक्त 'खरतरगच्छ पट्टावलि संग्रह' के बारेमें ज्ञात हुआ तो उनने उस संग्रहको, अपनी श्रद्धालु धर्मपत्नी श्रीमती इन्द्रकुमारीके ज्ञानपंचमी तप उद्यापन निमित्त प्रकाशित करनेका अपना मनोभाव प्रकट किया । हमने उनकी इच्छानुसार वह संग्रह उन्हें प्रकाशित करनेको दे दिया और उस पर एक प्रास्ताविक 'किञ्चिद् वक्तव्य' भी लिख दिया । पट्टावलियोंके संग्रह आदिके बारेमें ३०-३५ वर्ष पूर्व, हमने कैसे प्रयत्न आरंभ किया और ऐसे संग्रहोंका इतिहास की दृष्टि से क्या उपयोग है, इस बारेमें जो हमारा अभिमत रहा उस का कुछ उल्लेख उक्त वक्तव्यमें किया गया है । प्रस्तुत ग्रन्थके संपादन के साथ उसका कुछ ऐतिहासिक संबन्ध सा जुडा हुआ है, अतः उस वक्तव्यको आगेके पृष्ठों में उद्धृत कर देना उचित समझा है । आज जुलाई मासकी ७ तारीख है। हमारे लिये एक प्रकारसे यह शोकसूचक दिन है। ग्रन्थमालाके संस्थापक और हमारी साहित्योपासनाके प्रमुख सहायक बाबू श्रीबहादुर सिंहजी सिंघीकी आज १२ वीं स्वर्गमन-वर्षग्रन्थि है। प्रतिवर्ष हम आजके दिन, स्वर्गस्थ सिंघीजीकी कल्याण-कामना चाहते हुए अपनी हार्दिक श्राद्धक्रिया करते रहते हैं । तदनुसार, आज हम उनके दिवंगत भव्य आत्माकी पुण्यस्मृतिको, इस ग्रन्थरूपमें संपादित हमारी यह कृति समर्पण करते हैं। भने कान्त विहार । अहमदाबाद ७, जुलाई, सन १९५६ मुनि जिन विजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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