Book Title: Khartar Gacchha Bruhad Gurvavali
Author(s): Jinpal Upadhyaya, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 128
________________ खरतरगच्छगुर्वावलीगतविशेषनाम्नां सूचिः। १०१ जगहित [मुनि ] जंगल [गोत्र] जग्गा माहण ९० जटी जट्टड [सा०] जनार्दन गौड [पंडित ] २५, २६ जम्बूस्वामी ३, ७७ जयचन्द्र [ मुनि] १९, ८६ जयतश्री [ मंत्रिणी] जयता [ सा०] जयतिहट्ट [ बिरुद] २१ जयतिहुयण [ स्तोत्र] ६,९० जयदत्त [ मुनि ] १८ जयदेव [ छन्दःशास्त्र] १०, ३९ जयदेव [ सा०] ५३ जयदेवाचार्य १७, १८, २३ जयधर्म गणि ७७ जयधर्म [ महोपाध्याय ] ७७, ८५ जयन्ती [ देवता] जयप्रभा [ साध्वी] ५४ जयप्रिय [ मुनि, क्षुल्लक ] जयमअरी [क्षुल्लिका] ५९ जयमति [ साध्वी] जयर्द्धि [ महत्तरा ] ६४, ६६, ६९, ७४, ८७ जयलक्ष्मी [साध्वी] ५१ जयवल्लभ [मुनि] जयवल्लभ गणि ६२, ६३,६६, ६८, ६९ जयशील [मुनि] २० जयसार [ क्षुल्लक ] जयसिंह [मुनि] १९, ६० जयसुन्दरी [ साध्वी ] जयसेन गणि जयहंस [ सा०] जिनचंद्राचार्य जया [ देवता] जिनदत्त [ सूरि ] १, १६, १८-२४, जवणपाल [ सा०] ७२-७४ २७, ४०, ४२, ४३, ५०, जवनपाल [ ठ० ] ६६, ६०, ७९ ५१, ५६, ५८, ६४, ६६, जसोधवल [सा०] ५२ ७२, ७३, ७७, ७८, ८२ जालउर [ नगर-दुर्ग ] ९२ जिनदत्ताचार्य जावालिपुर [ नगर ] ६, ४४, ४७ जिनदास [सूरि] -५२, ५४, ५५, ५८ जिनदेव [सा०] ६१, ६३, ६५,७३, ७७, जिनदेव गणि ७९, ८० जावालिपुरीय [ संघ] ५७, ५८, जिनधर्म [ मुनि] ६१, ६४, ७०, ८० जिनपति [ सूरि ] ७०, १, २०, जाहेडाग्राम २३-२५, २९, ३२-३५, जाह्रण [सा० ] ६३, ६९, ७१, ३८,३९,४१, ४४, ४६७३, ७५, ७७, ८०, ८६ ५०, ७५, ८१, ८२, ८४, जिणचंद सूरि [ मणियाल ] ९०, ९२, ९३ जिनपद्म [ सूरि जिणदत्त गणि ९२ जिनपाल [ मुनि] २३ जिणदत्त सूरि जिनपाल गणि जिणनाग [ मुनि] ३४ जिनपालोपाध्याय ४५-५० जिणप्पइ सूरी ४६, ९३-९६ जिनप्रबोध [ सूरि ] ५४, ५५, ५७, जिणपति सूरी ५९, ७१, ७२, ७७ जिणप्पबोह सूरी जिनप्रभाचार्य १७ जिणवल्लह सूरि ९०, ९३ जिनप्रिय [ मुनि] २३ जिणसिंघ गणि _९३, ९४ जिनप्रियोपाध्याय जिणसेखर सूरि ९२ जिनबंधु [ मुनि] जिणहंस सूरि जिनभद्र [ मुनि २०, ४४ जिणेसर सूरि ९०, ९३ जिनभद्र सूरि जिनकुशल सूरि ७०, ७३, ७५- जिनभक्ताचार्य २३, २५ ७८, ८०-८७ जिनमत [उपाध्याय] २४, २५, ३४ जिनचक्रित (चन्द्र ?) गणि १९ जिनमती [ साध्वी] १८, १९ जिनचन्द्र [सूरि ] १,५,६,२०-२३ जिनमित्र [ मुनि ] ५०, ५८-६०, ६३, ६४- जिनरक्षित [ सा०] ६८, ६९, ७०-७२, ७४- जिनरक्षित [ मुनि ] ७८, ८०, ८२, ८५ | जिनरत्न सूरि ९२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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