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कातन्वव्याकरणम्
है कि उन दो शब्दों में से कौन प्रधान है ? इस प्रकार सामान्यतया पूर्वपदार्थप्रधान समास को अव्ययीभाव, उत्तरपदार्थप्रधान को तत्पुरुष, उभयपदार्थप्रधान को द्वन्द्व तथा अन्यपदार्थप्रधान को बहुव्रीहि नाम दिया गया है । तत्पुरुष समास में प्रथमान्त विशेष्यविशेषण आदि शब्दों का समास 'कर्मधारय' नाम से तथा उसमें भी संख्यापूर्वक शब्दों का समास 'द्विगु' नाम से प्रसिद्ध हैं । इस प्रकार छह समास व्याकरणशास्त्र में मान्य हैं । जैसे कहा गया है -
द्वन्द्वो द्विगुरपि चाहं गेहे मे नित्यमव्ययीभावः। तत्पुरुष कर्मधारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः॥
__ (द्र०, व्या० द० इति०, पृ० १९६)। दूसरे प्रकार से भी समास छह प्रकार का परिगणित है । जैसे - १. सुबन्त का सुबन्त के साथ । २. सुबन्त का तिङन्त के साथ । ३. सुबन्त का नाम (प्रातिपदिक) के साथ | ४. सुबन्त का धातु के साथ । ५. तिङन्त का तिङन्त के साथ तथा ६. तिङन्त का सुबन्त के साथ –
सुपां सुपा तिङा नाम्ना धातुनाथ तिडां तिङा । सुबन्तेनेति विज्ञेयः समासः षड्वियो बुधैः॥
(वै० भू० सा०, स० प्र०, का० १)। पूर्वाचार्यों ने भी इस संज्ञा का प्रयोग किया है - निरुक्त-अथ तद्धितसमासेष्वेकपर्वसु चानेकपर्वसु च पूर्वं पूर्वमपरमपरं
प्रविभज्य निळूयात् । - - - एवं तद्धितसमासान्निद्र्यात् (२।१)। बृहदेवता - विग्रहानिर्वचः कार्यं समासेष्वपि तद्धिते ।
द्विगुर्द्वन्द्वोऽव्ययीभावः कर्मधारय एव च ।
पञ्चमस्तु बहुव्रीहिः षष्ठस्तत्पुरुषः स्मृतः ।। (२।१०६, १०५) । अक्मातिशाख्य- सहेतिकाराणि समासमन्तभाक् (११।२५)। पुनर्बुवंस्तत्र
समासमिङ्गयेत् (११।३१)। वाजसनेयिप्रातिशाख्य-तिङ्कृत्तद्धितचतुष्टयसमासाः शब्दमयम् (१।२७)।