Book Title: Katantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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परिशिष्टम् -
७०९ ६०९. वध्यः
४५९ ६३५. वृद्धिनिमित्तम् ६१०. वर्णविधिः २६९ ६३६. वृद्धकुमारी ६११. वस्त्रक्रीती २४० ६३७. वृन्दारकः ६१२. वाजवर्मणः ५३५ / ६३८. वृक्षप्रतिपन्ना ६१३. वाज्रिणः ५३५ / ६३९. वैयसनः ६१४. वातपैत्तिकम् ५४०६४०. वैयाकरणः
५४४ ६१५. वायसम्
४४१ ६४१. वैयाकरणभार्यः ६१६. वार्धषिकः ४५२ ६४२. वैयुदयः
५४४ ६१७. वाहनम्
| ६४३. वैश्वधेनवम् ५४१ ६१८. विंशः
५३१ ६४४. वैषयिकः ६१९. विंशतिः
४९४ | ६४५. व्यञ्जनम् ६२०. विंशतितमः ४९४ | ६४६. व्यञ्जनान्तम् ६२१. विंशतितमी ४९४ | ६४७. व्यसनम्
५४५ ६२२. विकार्यम् ९८ ६४८. व्याकरणम् ।
५४५, ५४७ ६२३. विज्ञेयाः
४९८ / ६४९. व्यावहारिकः ५४६, ५४९ ६२४. विभक्तिसंज्ञाः ४९८ | ६५०. शङ्खपुष्पी २४१ ६२५. विशेषणम् ७, १७७, १७८ | ६५१. शङ्खभिन्नी २४० ६२६. विशेष्यम् ७, ३७८ | ६५२. शस्त्रीश्यामा २८६ ६२७. विश्वानरः ४०६ / ६५३. शांशपम् ५४१, ५४२ ६२८. विश्वामित्रः ४०६ / ६५४. शाकटिकः ४४८, ४४९ ६२९. विश्वाराट् ४०६ | ६५५. शाकपार्थिवः ६३०. विश्वावसुः ४०६ / ६५६. शालिनः ६३१. विष्यः
| ६५७. शातकौम्भः ५४१ ६३२. वीप्सा १४८ ६५८. शाब्दिकः
४५५ ६३३. वृकभयम्
३२६ / ६५९. शाब्दिको वैयाकरणः ४५१ ६३४. वृद्धि:
३८५ | ६६०. शाविरिकः
२६९
५३५
४५८
४४९

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